जब दिल में हो अकेले होने को
होता है अहसास
तब बुरे ख्याल आ ही जाते हैं
जब भीड़ में
हो जाते अकेले ही अनायास
तब नापसंद लोग भी
सामने चले आते हैं
हम चाहकर भी सोच नहीं बदल पाते
न आंखे हटा पाते हैं
अपने मन में अंतद्र्वन्द्वों के
जाल में स्वयं ही फंसकर छटपटाते हैं
बुरे ख्याल छोड़ना हो
या नापसंद आदमी से मूंह फेरने की
कोशिश करने से से अच्छा है
किसी अच्छे ख्याल की तरफ चले जायें
किसी पसंद के शख्स को पास बुलायें
उपेक्षा कोई मंत्र नहीं है जो
उबार सके अंतद्र्वंद्वों से
सापेक्ष मंत्र ही है जीवन का आधार
मन जिनमें नही रमता
उनसे दूर हटकर भी कहां जीवन जमता
ऐसे में कोई नया कर दिखायें
बदल दें अपनी दिशायें
जिंदगी में अमन रखना है तो
किसी से दूर रहने के लिये
किसी के पास चले जाते हैं
हम तो इसी सापेक्ष मंत्र से
जीवन के दर्द का इलाज करते जाते हैं
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दीपक भारतदीप
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