आकाश में छाये काले बादल
तन को छूती हैं बरखा की बूंदें
मन को खुश करती बहती हुई शीतल हवा
ऐसे में आती हैं होंठो पर हंसी
कोई दिल में ख्याल नहीं होता
अक्सर यह सोचता हूं कि
समझ सकता खुशी क्या होती है
ऐसा कोई साथ होता
मुर्दा चीजों में मन लगाते हैं सब
जानते नहीं कि तसल्ली क्या होती
गर्मी में बंद वातानुकूलित कमरों में
अपनी जिंदगी का पल गुजारने वाले
क्या जाने सुख का मतलब
अवकाश के दिन पिकनिक
मनाने का इंतजार करते
जब लगती है धूप सताने
जिन्होने दी गर्मी में सूरज की जलती धूप को
अपने खून से पसीने की दी है आहूति
उनका ही सावन साथी होता
और वर्षा की हर बूंद उनके लिए अमृत होता
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दीपक भारतदीप
समसामयिक लेख तथा अध्यात्म चर्चा के लिए नई पत्रिका -दीपक भारतदीप,ग्वालियर
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2 comments:
bhut bhavuk kavita.sundar ahasas sundar rachana.jari rhe.
वाह दीपक जी बधाई हो बहुत अच्छा लिखते हो
मुर्दा चीजों में मन लगाते हैं सब
जानते नहीं कि तसल्ली क्या होती
सच्चाई है आपकी कविता में कोई नहीं जानता तसल्ली क्या होती है लेकिन आप तसल्ली से लिखते रहिए बहुत बधाई आपको
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