Mar 8, 2009

चमन में कांटो की भीड़ भी होती-व्यंग्य कविता

इश्क एक इबादत होता
गर उसमें खता और बेवफाई नहीं होती।
पर उनके बिना नीयत की
आजमायश भी कैसे होती।
जब इश्क जुनून बन जाता है
तब दुनियांदारी का इल्म नहीं होता
पर महबूब के कदम चलना तो
इस जमीन पर ही हैं
जहां फूलों से खिले
चमन में कांटों की भीड़ भी होती।
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औरत की आजादी का हक
मांगते हैं शादी की बेडि़यों में।
मांस को नौचने की बजाय
सहलाने की बात करते हैं भेडि़यों में।
रस्म रिवाज से दूर रहने का देते फतवा
नये जमाने को नारों से कर लिया अगवा
आदमी को शेर से बकरा बनाने का सपना
औरत का हथियार बनाकर
दुनियां में चला रहे सिक्का अपना
तरक्की पसंदों की बात कौन समझ पाया
पुरानी रस्में उन्हें कभी नहीं भाती
पर शादी की कसमें निभाने की याद आती
सोचते आगे और देखते हैं पीछे
आसमान से करते नफरत, ताकते हैं नीचे
दिमाग दौड़ाते आगे, ख्याल बांध कर बेडि़यों में।

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1 comment:

Anonymous said...

पर शादी की कसमें निभाने की याद आती
सोचते आगे और देखते हैं पीछे
आसमान से करते नफरत, ताकते हैं नीचे
दिमाग दौड़ाते आगे, ख्याल बांध कर बेडि़यों में।
bahut sahi chitran kiya hai aapne,shaadi ke sahi mayanesamjhtenahi kuch log.aur ishq parjo rachana kari wo bhi sundar hai,ishq mein sab achha ho ye nahi ho sakta,kaate to honge h.