एक टीवी समाचार चैनल पर प्रसारित यह समाचार अत्यंत दिलचस्प था कि एक गांव में एक अलबेला कौवा नारियों को चोंच मारकर परेशान कर रहा है। हालांकि उसमें एक तरफ तो यह कहा जा रहा था कि नारियों को परेशान किया जा रहा है दूसरी तरफ कह रहे थे कि वह युवा नारियों को छेड़ रहा है। अलबत्ता खबर से यह लगा कि वह चैंच मारकर भाग जाता है।
दरअसल उस कौवे ने एक पेड़ पर अपने अंडे रखे हैं और उस मोहल्ले की लड़कियां जब वहां से निकलती हैं तो वह उन पर हमला कर भाग जाता है।
एक स्त्री कहना था कि ‘उसने उस पेड़ पर अपने अंडे रखे हैं और शायद वह इस डर से हमले करता है कि लड़कियां उसके अंडे न उठाकर ले जायें।’
वहां महिलायें परेशान होने के बावजूद उसे एक मनोरंजक घटना भी मान रहीं थी। मजे की बात यह है कि वह कौवा पुरुष वर्ग के बारे में निश्चित है कि वह उसके अंडे नहीं ले जायेंगे।
एक महिला ने कहा-‘अगर वह कोई लड़का होता तो उसकी शिकायत करते पर इस छिछोरे कौवे की भला कहां शिकायत की जा सकती है।’
कहने को तो सभी कौवे काले रंग के होते हैं पर उनमें कुछ मादा भी होती/होते हैं-यह हम अनुमान से कह रहे हैं क्योंकि हमारी जानकारी में ऐसी कोई बात नहीं आई कि कौवे समलैंगिक होते हैं। जब मादा होगी तभी तो उसे बच्चे पैदा होते होंगे। इंसानों की तरह पशु पक्षियों में भी नारी जाति बच्चे की रक्षा करने के लिये तत्पर रहती है। कुछ पशु पक्षियों के बारे में कहा जाता है कि अपने बच्चे को खतरा देखकर उनकी मादा खूंखार हो जाती है। जैसे बिल्ली के बारे में कहते हैं कि वह किसी आदमी से अपने बच्चे को खतरा देखती है तो उसकी आंखों में पंजे गाड़ देती है।
जिस तरह यह समाचार प्रसारित हो रहा था उसमें सनसनी कम मनोरंजन अधिक नजर आ रहा था। ऐसे मनोरंजक प्रसारण भी समाचारों की श्रेणी में आते हैं जो सीधे निर्मित होते हैं न कि फिल्मी या खेल के वह समाचार जो बनते हैं कमाई के लिये और उनका विज्ञापन मनोरंजन के नाम पर किया जाता है।
बहरहाल उस कौवा की चर्चा बहुत दिलचस्प लगी। आखिर वह नारी जाति पर के लिये हौव्वा क्यों रहा है? क्या पिछले जन्म में वह कोई ऐसा नर था जिसे नारी ने धोखा दिया। वैसे कौवे द्वारा नारियों को छेड़ने की यह पहली घटना नहीं है। इससे पहले इंद्रपुत्र जयंत ऐसी खुराफात भगवान श्रीराम जी की अर्धांगिनी श्रीसीता जी से कर चुका है जिसमें उसने अपनी आंख गंवा दी थी। संभव है कि यह कौवा फिर प्रकट हुआ हो पर अब यहां इस धरती पर श्रीराम जैसा कोई चरित्र तो है नहीं जो उसकी दूसरी आंख निकाल सके। फिर जैसे वह चैदह पंद्रह वर्ष की युवतियों को छेड़ रहा है उससे यह भी संदेह हो रहा है कि वह उस इतिहास को पढ़ चुका है या स्वयं संबद्ध रहा है इसी कारण जिस युवती के पीछे पति रूपी रक्षक न हो उन्हीं पर अपनी चैंच संभवतः गड़ा रहा है।
बहरहाल इस तरह दूसरे कौवे भी करने लगे तो महिलाओं के लिये परेशानी और मनोरंजन दोनों ही होगा ं। कहते हैं कि झूठ बोले कौवा काटे! अगर दूसरी महिला को काट गया तो कह सकती हैं कि देखो झूठ बोलती होगी।’
खुद को काट जाये तो फिर सोचती होंगी-हाय! मैं तो कभी नहीं झूठ बोलती!’
मगर जमाने का क्या? वह तो यही कहेगा कौवा काट गया तो इसका मतलब यही है कि झूठ बोलती होंगी।’
वैसे दूसरे कौवे भी यह करने लगें तो आश्चर्य नहीं होगा। हो सकता है कि वह कौवा पूर्वाभ्यास कर रहा हो। आजकल झूठ बोलने का रिवाज बढ़ गया है। कौवा किसी को काट नहीं रहा है। ऐसे में समस्त कौवों को अपनी छबि की चिंता होगी। इसलिये संभव है कि वह कौवा अपनी जाति का दूत होकर विचर रहा हो कि देखें मनुष्य की तरफ से किस तरह की प्रतिक्रिया होती है। वह अपना प्रतिवेदन कौवा महासम्मेलन में प्रस्तुत कर सकता है और फिर उसके निष्कर्षों के आधार पर बाकी कौवे भी सक्रिय हो जायें तो कोई आश्चर्य नहीं है।
आजकल मोबाइल आ गया है। लोग अधिक ही झूठ बोलते हैं।
लड़की ने मोबाईल उठाया। बात की और रख दिया। मां ने पूछा-‘किसका फोन था?’
‘फैंड्स का था-’कहीं भी ऐसा जवाब सुनने को मिल सकता है।
अब यह फैं्रड्स लड़का भी हो सकता है और लड़की भी! मां यह सोचकर चुप हो जाती है कि ‘लड़की का होगा’। लड़कीे चालाकी दिखाती है। उसने मां से झूठ न बोलकर अपने दिल को तसल्ली दी कि ‘मां से झूठ नहीं बोलकर मैंने अपना धर्म निभाया।’
यही स्थिति लड़के की भी है। फोन उठाता है। बात कर मोबाइल अपने हाथ पकड़ कर चल देता है। बाप पूछता है कि-‘कहां जा रहे हो?’
‘फैं्रड्स से मिलने।’यह भी जवाब अक्सर सुनने को मिलता है।’
अभी तक माता पिता यही मानकर चलते हैं कि वह समलैंगिक मित्र से मिलने जा रहा है-हालांकि इसका आशय अभी तक अच्छा था पर आगे यह बुरा लगने लगेगा। जो पाठक इस पाठ को पचास वर्ष बाद पढ़ें तो यह बात ध्यान रखें कि समलैंगिक से आशय केवल इतना ही है कि लड़का अपने मित्र लड़के और लड़की अपनी सहेली से केवल वार्तालाप करने जा रही है। पचास वर्ष बाद तो समलैंगिक शब्द ही खतरनाक होने वाला है यह हमें आज ही पता है।
आप सोच रहे होंगे कि लड़के भी झूठ बोलते हैं तो कौवा उनको शायद नहीं काटेगा तो यह भ्रम भी निकला दीजिये। इसी कार्यक्रम में एक दूसरे कौवे का जिक्र भी था जिसमें वह एक ग्रामीण को परेशान कर रहा है। वह ग्रामीण तमाम तरह के तंत्र मंत्र कर चुका है पर वह कौवा उसका पीछा नहीं छोड़ रहा है। यह कौवा बड़ा चालाक पक्षी है। यह तो पता नहीं कि दोनों घटनाओं में वह झूठ बोलने के कारण हमले कर रहा है या नहीं पर हो सकता है कि यह केवल अभ्यास हो बाद में कौवा जाति केवल झूठ बोलने वालों पर ही हमला करे।
दरअसल यह कौवा इस देश में ही इसलिये बचा हुआ है कि अभी भी इस देश में पुरानी अध्यात्मिक वृत्ति के लोग अधिक हैं। अगर देश से कहीं बाहर होता तो अभी तक दोनों कौवों को मारकर उनका मांस खा लिया जाता। तिस पर नारी जाति पर आंख डालने पर तो पूरी कौवा कौम ही मिटा दी जाती। हमारा अध्यात्मिक दर्शन सभी प्रकार के जीवों के साथ सहिष्णुता से जीना सिखाता है पर यह सभी जगह नहीं है। बाकी जगह तो इंसान के लिये पशु पक्षी क्या दूसरे ऐसे इंसान को भी मिटा दिया जाता है जो समूह के कायदे और कानून नहीं मानता या विद्रोह करता है।
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