कई बार अपनों ने ही गिराया
फिर भी टूटे नहीं।
काम निकालकर भूल गये
फिर भी हम रूठे नहीं।
हमारे अरमानों को लगाई गयी आग
फिर भी अपने दूसरे के सपने फूंके नहीं।
कभी कभी लगता है
गलती दर गलती करते गये
लोगों को झूठे दर्द
अपने समझ कर सहते गये
पर फिर सोचते हैं कि
भला वह लोग भी तो
इतनी दगा के बावजूद
अपनी जिंदगी में उठे नहीं।
यूं ही खड़े हैं जिंदगी में
सलामत हैं हाथ पांव क्या यह कम है
जुटा लेते अपने लिये
हम भी नकली हमदर्द
पर इन आंखों से कभी नकली आंसू फूटे नहीं।
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