छोटे पौद्यों को नहीं पनपने देते.
उनके मन की हलचल को
चेहरे पर पढना हो तो
ऐसे इंसानों को देख लो
जो गुजार रहे हैं जिंदगी ख़ास शख्सियत बनकर,
खड़े हैं दरख्त की तरह तनकर,
अपनी कम लायकी और औकात की
असलियत उनके जेहन को करती है तंग,
चेहरे का उड़ जाता है रंग,
कोई दूसरा आकर बराबरी न करे
इसी सोच में आँखे आकाश की ओर कर लेते.
अपने से बड़े की करते चाटुकारिता
छोटे को देखकर भी करते अनदेखा
अपने अन्दर बैठे उनके खौफ
खुद को ही घेर लेते.
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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3 comments:
बड़े दरख्त अपने नीचे
छोटे पौद्यों को नहीं पनपने देते.
सही कहा है -- बडो (??) ने कब छोटो को पनपने दिया है
अपने से बड़े की करते चाटुकारिता
छोटे को देखकर भी करते अनदेखा
अपने अन्दर बैठे उनके खौफ
खुद को ही घेर लेते.
kya baat hai..
अपने अन्दर बैठे उनके खौफ
खुद को ही घेर लेते. nice
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