वह हर रोज तारीखों पर लिखते हैं।
इसलिए कलेंडर में हमेशा झांकते दिखते हैं।
बाजार के सौदागरों के लिए दलालों ने
अपने कारिंदों के सहारे
जमाने में किये हैं इतने हादसे कि
पेशेवर कलमकारों के शब्द
उन्हीं पर कहीं रोते तो कहीं हंसते मिलते हैं।
----------
हम हादसों की तारीखें भूल जाते हैं
पर शब्दों के सौदागर
हर तारीख को कब्र से ढूंढ कर लाते हैं।
भूल न जाये जमाना उनके साथ जमाना
शब्दों की जादूगरी और उनका नाम
इसलिये हर रोज की तारीख का
हादसा याद दिलाते हैं।
इसलिए कलेंडर में हमेशा झांकते दिखते हैं।
बाजार के सौदागरों के लिए दलालों ने
अपने कारिंदों के सहारे
जमाने में किये हैं इतने हादसे कि
पेशेवर कलमकारों के शब्द
उन्हीं पर कहीं रोते तो कहीं हंसते मिलते हैं।
----------
हम हादसों की तारीखें भूल जाते हैं
पर शब्दों के सौदागर
हर तारीख को कब्र से ढूंढ कर लाते हैं।
भूल न जाये जमाना उनके साथ जमाना
शब्दों की जादूगरी और उनका नाम
इसलिये हर रोज की तारीख का
हादसा याद दिलाते हैं।
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
-------------------------------------
यह आलेख इस ब्लाग ‘राजलेख की हिंदी पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिकालेखक संपादक-दीपक भारतदीप
No comments:
Post a Comment