Dec 28, 2009

खुशियां और अहसास-हिन्दी शायरी (khushiyan ka ahasas-hindi shayri)

 हाथ में बंधी घड़ी में टंगी सुईयां

चलती जा रही हैं

समय खुद अपने रूप को

दिन, रात, महीना और वर्ष के नाम से

नहीं पकड़ पाया।

इंसान क्यों झूम रहा है

आते हुए दिन को देखकर

गुजरे वक्त के निकल जाने का

गम उसने कभी नहीं मनाया।

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आसमान में कहीं खुशियां नहीं टंगी

जो गिर हाथ में आ जायेंगी,

बाजार में किसी दाम नहीं मिलतीं

जो खरीदने पर घर सजायेंगी।

आंखों से न दिखाई  देती

कानों से सुनाई नहीं देती

और छूकर स्पर्श नहीं करती

मर चुके अहसासों को जिंदा करके देखो

खून मे खुशियां दौड़ती नजर आयेंगी।
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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