आशिक ने माशुका से कहा
‘तुम आज जाकर अपने माता पिता से
अपनी शादी की बात करना,
मेरी प्रशंसा का उनकी आंखों के सामने बहाना झरना,
उनको बताना
मेरा आशिक कई खेलों का खिलाड़ी है,
अपने प्रतिद्वंद्वियों की हालत उसने हमेशा बिगाड़ी है,
हॉकी में बहुत सारे गोल ठेलता है,
तो कुश्ती के लिये भी डंड पेलता है,
बहुत दूर तक भाला उछालता है,
तो बॉल भी उछल कर बॉस्केट में डालता है,
देखना वह खुश हो जायेंगे,
तब हम अपनी शादी बनायेंगे।’
जवाब में माशुका बोली
‘‘मैंने उनको यह सब बताया था,
पर उनको खुश नहीं पाया था,
उन्होनें मुझे समझाया कि
‘खिलाड़ी नहायेगा क्या
निचोड़ेगा क्या,
जो क्रिकेट नहीं खेले वह खिलाड़ी कैसा,
पैसा न कमाये वह होता अनाड़ी जैसा,
अगर खेल प्रतियोगिता का ठेकेदार होता
तो बात कुछ बनती,
कहीं मैदान बनवाता तो कहीं खरीदता खेल का सामान
तब कमीशन लेने पर ही जिंदगी उसकी छनती,
हमने तो बड़े बड़े खिलाड़ियों को सोने का पदक
पीतल के भाव बेचते देखा है,
कईयों को ठेला खींचते भी देखा है,
खेलने में मज़दूरी जितनी कमाई,
भला किसके काम आई,
अगर हो कोई खेल प्रबंधक तो ही
रिश्ता मंजूर है,
वरना उसके लिये दिल्ली अभी दूर है,’
इसलिये तुम खेलना बंद करो,
या मुझे भूल जाओ,
कहीं अपनी जुगाड़ लगाओ
इतने सारे संगठन हैं
कहीं सचिव या अध्यक्ष पद पर कब्जा कर
बढ़ाओ अपना सामाजिक सम्मान,
नामा और मिले और नाम,
वरना अपने सपने अधूरे रह जायेंगे।’’
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कवि, संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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atti sundar
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