जमीन पर लहु बिखरा पड़ा है
फिर भी उनका बयान
किन्तु और परंतु शब्दों के साथ खड़ा है।
मरने वालों पर बोले वह कुछ शब्द
पर कातिलों का दर्द भी बयान कर गये
हैवानों के इंसानी हकों के साथ
ज़माने से लड़कर उन्हें जिंदा रखने का जिम्मा
उनकी रोटी के गहने में सच की तरह जो जड़ा है।
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शहीद जो हो गये
उन पर उन्होंने आंसु बहाये,
पर फिर कातिलों के इंसाफ के लिये
खड़े हो गये वह मशाल जलाये।
हैवानों के चेहरे पर फरिश्तों का नकाब
वह हमेशा सजा दी
फिर इंसानी हक के नारे लगाये।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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3 comments:
बहुत सुंदर ।
mukhauton me gadit ye rachna behtareen hai.... aasha hai aise hi kuch naveen padya hamko aage bhi dekhne ko milenge...
priy bandhu "lahu bikhraa padaa hai "bahut hi achchhee lagi ,bhawishy me bhi aisa hi likhte raho to ek din aapkaa naam bhi hoga
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