जिंदा रहने के लिये
मरते दम तक वह दौलत का ढेर लगायेंगे,
जिस भूख से पड़ा नहीं कभी वास्ता
उसके आने के शक में
भागते ही जायेंगे।
उनसे हक इंसाफ की
उम्मीद करना बेकार है
अपने खौफ से भागते हुए
जिंदगी गुजारने वाले
अपने पांव तले
आम इंसानों के जज़्बात
यूं ही कुचलते जायेंगे।
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जिनसे चाहा है आसरा जान का
वही छुरा पीठ में घौंप जाते हैं,
फिर अपनी मज़बूरी जताते हैं।
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कवि, संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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