योग साधकों को यह समझाना व्यर्थ है कि उनको क्या करना चाहिए और क्या नहीं! अगर कोई योग शिक्षक अपने शिष्य को योग के आठों अंगों की पूर्ण शिक्षा प्रदान करे तो फिर इस बात की आवश्यकता नहीं रह जाती कि उसे वह संसार में परिवार या समाज के संभालने के तरीके भी बताये। व्यापार और राजनीति के सिद्धांत समझाये। इसका कारण यह है कि योग साधना से आदमी की समस्त इंद्रियां बाहर और अंदर तीक्ष्णता से सक्रिय रहती है। उसके चिंतन की धार इतनी तीक्ष्ण हो जाती है कि वह सामने दृश्य देखकर अपने मस्तिष्क उसकी अगली कड़ी का अनुमान तो कर ही लेता है भूतकाल भी समझ लेता है। उसे अपनी देह, मन और बुद्धि को कुछ करने का निर्देश देने की आवयकता भी नहीं पड़ती क्योंकि योग साधक की सभी क्रिया शक्तियां स्वाभाविक रूप से सक्रिय हो जाती हैं। अपनी धारणा शक्ति से योगसाधक अपने सामने हर गतिविधि के पीछे छिपी शक्तियों को देख लेता है-या अनुमान कर लेता है। वह वैचारिक योग की ऐसी प्रक्रिया से गुजरता है जहां उसे अपने मस्तिष्क को अधिक कष्ट देना नहंी पड़ता। हालांकि इस प्रकार के गुण पाने के लिये यह जरूरी है कि योगसाधक पतंजलि योग दर्शन तथा तथा श्रीमद्भागवत्गीता का अध्ययन करे। ऐसे में आज विश्व के सबसे प्रसिद्ध शिक्षक बाबा रामदेव का जनजागरण अभियान बहुत दिलचस्पी और चर्चा का विषय बन गया है।
एक प्रश्न अक्सर पूछा जाता है कि योग शिक्षक स्वामी रामदेव अपने कार्यक्रमों में योग से इतर विषयों पर क्यों बोलते हैं? कभी राष्ट्रवाद तो कभी धार्मिक तथा सामाजिक गतिविधियों पर अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्हें क्या इस बात का आभास होता है कि वह किसे और क्यों समझा रहे हैं? अगर स्वामी रामदेव इसे सामान्य ढंग से अपने जन जागरण का हिस्सा समझते हुए करते हैं तो कोई बात नहीं पर अगर वह अगर उनको लगता हैं कि उनके कथनों का प्रभाव हो रहा है तो गलती कर रहे हैं। पहली बात तो यह कि अगर वह उन लोगों को समझाते हैं जो योग साधना में नियमित रूप से संलग्न नहीं हैं तो शायद जरूर इस बात को न माने पर सच यह है कि ऐसे लोग इस कान से बात सुनते हैं और दूसरे कान से निकाल देते हैं। अगर लोग ऐसे ही समझने वाले होते तो आज शायद आज के संत लोग कबीर और तुलसी के दोहे पढ़ाकर उनको ज्ञान नहीं देते। मतलब योग साधना न करने वालों को अपना प्रवचन दिया कि नहीं, सब बराबर है पर अगर योग साधक है तो उसे कुछ बताने या समझाने की आवश्यकता ही नहीं है वह सारी बातें स्वतः ही समझन की सिद्धि प्राप्त कर लेता है।
हमारे देश में हर युग मे संत रहे हैं और आज भी हैं पर आमजन में कोई चेतना नहीं है। लोग अपने सांसरिक कामों में ही लिप्त रहते हुए सुख की कामना करते हैं। उनको अपने घर में कल्पित स्वर्ग के वह सुख चाहिये जिनकी कल्पना कुछ ग्रंथों में बताई गयी है। ज्ञान को वह केवल सन्यासियों की संपत्ति मानते हैं। एक अरब के इस देश को प्रचार माध्यमों के दम पर व्यापार, उद्योग राजनीति तथा फिल्म में रूढ़ता का दौर इसलिये चल रहा है क्योंकि चंद परिवार अपने ही समाज को मूढ़ समझते हैं। उनको कोई चुनौती नहंी दे सकता। हर स्तर पर वंशवाद फैला हुआ है। समाज का निचला तबका स्वयं को असहाय अनुभव करता है। स्पष्टतः इस चेतना विहीन समाज में योग साधना ही जान फूंक सकती है और बाबा रामदेव को अगर समर्पित बुद्धिजीवियों का सतत समर्थन मिल रहा है तो केवल इसलिये कि वह इस बात को समझते हैं कि लगभग बिखर रही सामाजिक परंपराओं को बचाने या नवीन समाज बनाने की जिम्मेदारी उन्होंने ली है शायद उससे कोई विकास का दीपक प्रज्जवलित हो उठे।
अपने को देश में मिल रहे समर्थन ने योग गुरु स्वामी रामदेव को प्रोत्साहित किया है जिससे उनके तेवर आक्रामक हो गये हैं। इसका प्रभाव भी हो रहा है क्योंकि प्रचार माध्यमों में उनके कथन सर्वत्र चर्चित हो रहे हैं, पर उनके भविष्य में प्रभावों का अभी अनुमान करना ठीक नहीं है क्योंकि समाज में चेतना विहीन लोगों से कोई आशा नहीं की जा सकती है और योग साधना से जिनकी इंद्रियों में चेतना है उनको तो कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं है। सीधी बात कहें तो बाबा रामदेव के समर्थकों की प्रचारात्मक भूख इससे शांत होती है और हमें इस पर कुछ प्रतिकूल टिप्पणियां कर उनके अभियान पर प्रश्न चिन्ह खड़ा नहीं करना।
स्वामी रामदेव को राष्ट्रवादी अभियान में सबसे बड़ी समस्या यह आने वाली है कि उनके संगठन के प्रचारात्मक मोर्चे के अकेले ही सिपाही हैं और ऐसे अभियानों के लिय कम से कम आठ से दस उनको अपने जैसे लोग चाहिये। इतना ही नहीं अभी उनको यह भी प्रमाणित करना है कि वह योग साधना की शिक्षा से लेकर राष्ट्रवादी अभियान में उन शक्तियों से परे रहे हैं जो बाज़ार और प्रचार के दम पर समाज पर नियंत्रण किये हुए हैं। यह शक्तियां धर्म, राजनीति, समाज सेवा, कला, साहित्य और मनोरंजन के क्षेत्र में अपने मुखौटे रखकर आम लोगों की भीड़ पर शासन करती है। स्वामी रामदेव एक तरफ कहते हैं कि उनके पास एक भी रुपया नहीं है, पतंजलि योग पीठ की संपत्ति तो उनके द्वारा स्थापित ट्रस्ट की है’, तो दूसरी तरफ अपने ऊपर हो रहे शाब्दिक प्रहारों के लिये खुद ही सामने आकर कहते हैं कि ‘हमारे ट्रस्ट के आर्थिक कामकाज में पूरी तरह ईमानदारी बरती जाती है।’
ऐसे में कुछ सवाल स्वामी रामदेव से भी पूछे जा सकते हैं कि‘जब आपके पास रुपया नहीं है और ट्रस्ट काम देख रहा है तो आप उसकी ईमानदारी का दावा कैसे कर सकते हैं, खासतौर से जब उसमें दूसरे लोग भी सक्रिय हैं। आप तो घूमते रहते हैं तब आपको क्या पता कि ट्रस्ट के अन्य कामकाजी लोग क्या करते हैं? फिर वही लोग सामने आकर इन शब्दिक हमलों का सामना क्यों नहीं करते?’
योग शिक्षा से अलग स्वामी रामदेव की अन्य गतिविधियों मे अनेक पैंच हैं। क्या बाबा रामदेव के पीछे जो संगठन या व्यक्तियों का कोई ऐसा समूह है जो उनकी छवि या लोकप्रियता का लाभ निरंतर उठाकर अपना काम साध रहा है। 12 सौ करोड़ की संपत्ति होने की बात तो स्वयं स्वामी रामदेव ने स्वयं स्वीकारी है। इतनी संपत्ति को संभालने वालों में सभी माया से बचे रहने वाले पुतले हैं यह सहजता से स्वीकार करना कठिन है। किसी भी संगठन में पैसा देखकर कोई बेईमान न हो यह मान लेना कठिन लगता है। अगर बाबा रामदेव के संगठन में सभी योग साधना में निपुण हैं तो वह उनके अलावा अन्य कोई शब्दिक आक्रमण के बचाव में क्यों नहीं आता। हर बार अपने सर्वोच्च शिखर पुरुष को आगे क्यों करते हैं?
आखिरी बात यह कि हमारा मानना है कि बाबा रामदेव को अपनी शक्ति योग साधना की शिक्षा के साथ ही राष्ट्र जागरण के अभियान में लगाना चाहिए। वह चाहें तो समसामयिक विषयों पर भी बोलें, पर अपनी शक्ति अपने ऊपर लगने वाले आरोपों के खंडन में न लगायें। उनके स्थापित ट्रस्ट के पास 12 सौ करोड़ क्या 12 लाख करोड़ की संपत्ति भी हो तो हम उसमें छेद देखने का प्रयास नहंी करेंगे कि वह तो किसी एक व्यक्ति या उनके समूह की भी हो सकती है। चूंकि स्वामी रामदेव उसकी अपने होने से इंकार करते है तो फिर उनके भक्तों के लिये वह विवाद का विषय नहीं रह जाता। इस देश में इतने सारे लोगों के पास इतनी संपत्ति है पर आम लोग उनमें कितनी दिलचस्पी लेते हैं? यह काम राज्य का है और बाबा रामदेव के अनुसार उनके स्थापित ट्रस्ट की पूरी जानकारी संबंधित विभागां को है। अगर वह अपने ट्रस्ट की आर्थिक सफाई देते रहेंगे तो यकीनन अपने अभियान से भटक जायेंगे। एक बात याद रखनी चाहिये कि इस संसार में जो बना है नष्ट होगा। पतंजलि ट्रस्ट हो या उसकी संपत्ति भी एक न एक दिन प्रकृति के नियम का शिकार होगी पर बाबा रामदेव की पहचान भारत की प्राचीन विधा योग को चर्चित बनाने तथा जन जागरण की वजह से हमेशा रहेगी। आदमी के साथ संपत्ति नहीं जाती बल्कि उसका कर्म जाता हैं। ऐसे में इतने बड़े योगी को भौतिकता को लेकर विवाद में फंसना थोड़ा अचंभित करता है। एक आम लेखक और योग साधक होने के नाते हम देश की खुशहाली की कामना करते हैं और बाबा रामदेव इसके लिये प्रयासरत हैं तो उस पर हमारी दृष्टि जाती है तब कुछ न कुछ विचार आता ही है। खासतौर से तब जब हमने छह वर्ष पूर्व जब रामदेव को योग शिक्षा के लिये एक अवतरित होते देखा था तब यह आशा नहीं थी कि वह इतना सफर तय करेंगे। उन जैसे योगी पर माया भी अपना रंग जमायेगी। माया संतों की दासी होती है पर लगता है कि स्वामी रामदेव अब इसी दासी को अपने यहां जगह देने के लिये भी अपनी सफाई आलोचकों को देते हुए साथ में जनजागरण का अभियान भी जारी रखेंगे। अलबत्ता उन पर योगमाता की कृपा है और देखना यह है कि वह किस तरह यह दोनों काम एक साथ कर पायेंगे
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कवि, संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है।
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