Apr 22, 2011

भ्रष्टाचार और इतिहास-हिन्दी व्यंग्य कविता (bhrashtachar aur itihas-hindi vyangya kavita)

भ्रष्टाचार शायद मिट जायेगा,देश में जंग जारी है,
कीचड़ का हथियार लिये खड़े योद्धा,जोश भारी है।
यकीन नहीं एक दूसरे पर, फिर भी साथ साथ हैं,
कर्मवीरों का जंग के नाम पर धोखा देना जारी है।
चारों तरफ फैलाये घृणा का भाव, वाणी वाचाल है
दौलत की कीचड़ में, सज्जनता की खोज जारी है।
भ्रष्टाचार मिटे या नहीं, कौन देखने आयेगा फिर
इतिहास में दर्ज कराने का उनको शौक भारी है।
दीपक बापू दिखायें आईना आंदोलनों के इतिहास का
लोग रहे हमेशा खाली, नायकों की प्रसिद्धि बहुत भारी है।
                   कवि, लेखक , संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,ग्वालियर 
poet,editor,writer and auther-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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