टीवी पत्रकार ने कहा
अपने संपादक से
‘सर,
आप देखिए मैंने
राजघराने के राजकुमार के
विवाह प्रसंग को कितनी अच्छी तरह
अपने चैनल पर चलाया,
ढेर सारे विज्ञापन चलते रहे,
लोगों के मन में स्वयं
और औलादों की ऐसी ही शादी के
सपने मन ही मन पलते रहे,
हमने भी लिया विदेशी चैनलों से
सारा माल साभार,
हो गया अपने चैनल का बेड़ा मुफ्त में पार,
इसे कहते हैं कि हल्दी लगे न फिटकरी
रंग चोखा आया।’
सुनकर संपादक ने कहा
‘वैसे भी कौन हमारे समाचारों पर
कोई खर्चा आता है,
वह तो गनीमत समझो
कि मैंने तुम्हारी नौकरी का जुगाड़
प्रबंधकों से कर रखा है
वरना उनको तो तुम्हारा
वेतन देना भी भारी नज़र आता है,
वैसे भूल जाओ अब इस खबर को,
नहीं खींच सकते यह खबर ऐसे, जैसे रबड़ को,
अब कोई दूसरी सनसनी या रोमांचक
खबर जुटाने लग जाओ,
इस खबर को भी मत भुलाओ,
ध्यान में रखना
राजकुमार के प्रेम प्रसंग,
और सजनी से मिलन का रंग,
अभी हमने श्रृंगार रस से कार्यक्रंम सजाया,
इसलिये जवानों को बहुत भाया,
अब देखन कहीं इस प्रेम में विरह कब आता है,
धनपतियों और राजघरानों के रिश्तों में
कभी ठहराव न उनको न जनता को भाता है,
देखना कब विरह का रंग आता है,
फिर तलाक से भी पब्लिक का नाता है,
इस प्रेम प्रसंग और विवाह की फिल्म और फोटो
अपने पास संजोये रखना
देखे कब होता है हमारी सनसनी का पकना,
कभी प्रेम और विवाह का प्रसंग अधिक नहीं खिंचता
इसलिये उससे हमने इतना नहीं कमाया
जितना विरह से पाया,
जब होगा राजधराने में घरेलू झगड़ा
दर्शकों को देंगे सनसनी का झटका तगड़ा,
शादी एक दिन होती है,
पर झगड़े की बात बरसों तक
हमारे विज्ञापन ढोती है,
इसलिये बाकी खबरों में तलाश करते रहो,
कनखियों से राजघराने की तरफ भी तकते रहे,
प्रेम और शादी से अधिक प्रसंग
विरह का लंबा खिंच जाता है,
उससे ही हर प्रचारक अधिक कमाता है,
तलाक फैलाता है सनसनी,
मजा बढ़ाती है बड़े लोगों की तनातनी,
मैंने तुम्हें वही बात बताई,
जो अनुभव से पाई,
जब देखो राजकुमार और राजकुमारी का फुका चेहरा
समझ लो लंब समय तक
विज्ञापन चलाने के लिये
प्रसंग पाने का मौका पाया।’’
------------
‘सर,
आप देखिए मैंने
राजघराने के राजकुमार के
विवाह प्रसंग को कितनी अच्छी तरह
अपने चैनल पर चलाया,
ढेर सारे विज्ञापन चलते रहे,
लोगों के मन में स्वयं
और औलादों की ऐसी ही शादी के
सपने मन ही मन पलते रहे,
हमने भी लिया विदेशी चैनलों से
सारा माल साभार,
हो गया अपने चैनल का बेड़ा मुफ्त में पार,
इसे कहते हैं कि हल्दी लगे न फिटकरी
रंग चोखा आया।’
सुनकर संपादक ने कहा
‘वैसे भी कौन हमारे समाचारों पर
कोई खर्चा आता है,
वह तो गनीमत समझो
कि मैंने तुम्हारी नौकरी का जुगाड़
प्रबंधकों से कर रखा है
वरना उनको तो तुम्हारा
वेतन देना भी भारी नज़र आता है,
वैसे भूल जाओ अब इस खबर को,
नहीं खींच सकते यह खबर ऐसे, जैसे रबड़ को,
अब कोई दूसरी सनसनी या रोमांचक
खबर जुटाने लग जाओ,
इस खबर को भी मत भुलाओ,
ध्यान में रखना
राजकुमार के प्रेम प्रसंग,
और सजनी से मिलन का रंग,
अभी हमने श्रृंगार रस से कार्यक्रंम सजाया,
इसलिये जवानों को बहुत भाया,
अब देखन कहीं इस प्रेम में विरह कब आता है,
धनपतियों और राजघरानों के रिश्तों में
कभी ठहराव न उनको न जनता को भाता है,
देखना कब विरह का रंग आता है,
फिर तलाक से भी पब्लिक का नाता है,
इस प्रेम प्रसंग और विवाह की फिल्म और फोटो
अपने पास संजोये रखना
देखे कब होता है हमारी सनसनी का पकना,
कभी प्रेम और विवाह का प्रसंग अधिक नहीं खिंचता
इसलिये उससे हमने इतना नहीं कमाया
जितना विरह से पाया,
जब होगा राजधराने में घरेलू झगड़ा
दर्शकों को देंगे सनसनी का झटका तगड़ा,
शादी एक दिन होती है,
पर झगड़े की बात बरसों तक
हमारे विज्ञापन ढोती है,
इसलिये बाकी खबरों में तलाश करते रहो,
कनखियों से राजघराने की तरफ भी तकते रहे,
प्रेम और शादी से अधिक प्रसंग
विरह का लंबा खिंच जाता है,
उससे ही हर प्रचारक अधिक कमाता है,
तलाक फैलाता है सनसनी,
मजा बढ़ाती है बड़े लोगों की तनातनी,
मैंने तुम्हें वही बात बताई,
जो अनुभव से पाई,
जब देखो राजकुमार और राजकुमारी का फुका चेहरा
समझ लो लंब समय तक
विज्ञापन चलाने के लिये
प्रसंग पाने का मौका पाया।’’
------------
कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.comयह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.हिन्दी पत्रिका
५.दीपकबापू कहिन
६. ईपत्रिका
७.अमृत सन्देश पत्रिका
८.शब्द पत्रिका
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.हिन्दी पत्रिका
५.दीपकबापू कहिन
६. ईपत्रिका
७.अमृत सन्देश पत्रिका
८.शब्द पत्रिका
No comments:
Post a Comment