टीवी या अखबार पर कोई समाचार देखकर ब्लॉग पर लिखना अपने आप मे एक अजीब परेशानी के साथ ही आश्चर्य भी पैदा करता है। हमने अन्ना हजारे के आंदोलन पर कल एक लेख लिखा था कि प्रचार माध्यमों ने उसे रेल की तरह यार्ड में खड़ा कर दिया है क्योंकि इस समय उत्तरप्रदेश में चुनाव चल रहे हैं जिसके कारण उनके पास विज्ञापन दिखाने के लिये पर्याप्त सामग्री है और जब उनके पास अपने प्लेटफार्म पर कोई सनसनीखेज मनोरंजन समाचार नहीं होगा तब वह भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को नयी साज सज्जा के साथ लायेंगे। इस लेख को लिखे एक घंटा भी नहीं हुआ था कि अन्ना हजारे साहेब के सेनापति का बयान आया जिसमें जनप्रतिनिधि सभाओं पर ही आक्षेप कर डाले। इसी कारण उनसे अनेक लोग नाराज हो गये। तत्काल इस विषय पर बहस प्रारंभ हो गयी। मतलब यह कि इधर उत्तरप्रदेश में चुनाव समाप्त होने की तरफ हैं तो इधर अब आंदोलन को एक बार फिर चर्चा में लाने का प्रयास भी शुरु हो गया।
इस विवादास्पद बयान को अन्ना साहेब के सेनापति ने ट्विटर पर भी जारी किया। प्रचार माध्यम आम ब्लाग लेखकों के साथ ही ट्विटर तथा फेसबुक वालों की तरफ ताकते नहीं है इसलिये यह कहना पड़ता है कि उनकी नज़र में बाज़ार से प्रायोजित लोग ही महत्वपूर्ण होते हैं। अब अन्ना जी के सेनापति साक्षात्कार भी आने लगे हैं। आरोपी और अपराधी में अंतर होना चाहिए, यह तक अब सुनाया जा रहा हैं। एक उद्घोषक ने सेनानति से पूछा कि-‘‘आप अब चुनाव खत्म होते ही अपनी छबि चमकाने के लिये पुनः अवतरित होने के लिये ऐसा बयान दे रहे हैं।’’
सेनापति का बयान था कि‘‘इस तरह का बयान तो हम पहले भी दे चुके हैं, अब आप ही इसे तूल दे रहे हैं।’’
इस वार्तालाप से जाहिर है कि अगर अन्ना हजारे के समर्थक प्रचार समूहों से प्रायोजित नहीं है तो यह बात तो प्रमाणित होती है कि प्रचार प्रबंधक कहीं न कहीं स्वतः ही उनका उपयोग करने की कला में माहिर हैं। हम अन्ना हजारे के आंदोलन पर करीब से नज़र रखते रहे हैं। जिस तरह अन्ना के सक्रिय साथी और प्रचार माध्यम एक साथ सक्रिय हुए इससे फिक्सिंग का संदेह आम आदमी को भी होगा इसमें संशय नहीं हैं।
देश में भ्रष्टाचार हटना चाहिए इस तर्क से तो सहमति है पर कार्यप्रणाली को लेकर हमारा विचार थोड़ा अलग है। थोड़ा डरते हुए भी लिख रहे हैं बल्कि कहना चाहिए कि हमारी और उनकी सोच में ही मूलभूत अंतर है। बहरहाल अब यह देखना है कि प्रचार प्रबंधक किस तरह इस आंदोलन को भुनाते हैं। कहीं ऐसा न हो कि बिग बॉस की तरह यह भी फ्लाप योजना साबित न हो। इधर कॉमेडी सर्कस भी फ्लाप हो रहा है। सच कहें तो हमारे देश में मसखरे बहुत हैं पर मसखरी लिखना भी एक कला है जो विरलों को ही आती है। प्रचार प्रबंधकों के लिये इस समय सबसे बड़ा संकट यह होगा कि वह किस तरह कोई ऐसा विषय लायें जिससे देश के जनमानस को व्यस्त रखा जा सकें।
कल लिखा गया लेख यहां पढ़ें।
भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन रेल की तरह यार्ड में खड़ा है-हिन्दी लेख (bhrashtachar viodhi andolan, anti corrupiton movement a train rail stay in yard-hindi lekh or article)
भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन रेल की तरह यार्ड में खड़ा है-हिन्दी लेख (bhrashtachar viodhi andolan, anti corrupiton movement a train rail stay in yard-hindi lekh or article)
अन्ना हज़ारे का आंदोलन बाज़ार और प्रचार प्रबंधकों की सोची समझी योजना का एक भाग है-यह संदेह हमेशा ही अनेक असंगठित स्वतंत्र लेखकों को रहा है। जिस तरह यह आंदोलन केवल अन्ना हजारे जी की गतिविधियों के इर्दगिर्द सिमट गया और कभी धीमे तो कभी तीव्र गति से प्रचार के पर्दे पर दिखता है उससे तो ऐसा लगता है कि जब देश में किसी अन्य चर्चित मुद्दे पर प्रचार माध्यम भुनाने में असफल हो रहे थे तब इस भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की रूपरेखा इस तरह बनाई कि परेशान हाल लोग कहीं आज के आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, कला, टीवी तथा फिल्म के शिखर पुरुषों की गतिविधियों से विरक्त न हो जायेे इसलिये उनके सामने एक जननायक प्रस्तुत हो जो वस्तुओं की बिक्री बढ़ाने वाले विज्ञापनों के बीच में रुचिकर सामग्री निर्माण में सहायक हो। हालांकि अब अन्ना हज़ारे साहब का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन अब जनमानस में अपनी छबि खो चुका है पर देखने वाली बात यह है कि प्रचार माध्यम अब किस तरह इसे नई साज सज्जा के साथ दृश्य पटल पटल पर लाते हैं।
जब अन्ना हजारे का आंदोलन चरम पर था तब भी हम जैसे स्वतंत्र आम लेखकों के लिये वह संदेह के दायरे में था। यह अलग बात है कि तब शब्दों को दबाकर भाव इस तरह हल्के ढंग से लिखे गये कि उनको समर्थन की आंधी का सामना न करना पड़े। इसके बावजूद कुछ अत्यंत तीक्ष्ण बुद्धि वालों लोगों ने उसे भारी ढंग से लिया और आक्रामक टिप्पणी दी। इससे एक बात तो समझ में आयी कि हिन्दी में गूढ़ विषय को हल्के ढंग से लिखने पर भी यह संतोष मन में नहीं पालना चाहिए कि बच निकले क्योंकि अभी भी कुछ लोग हिन्दी पढ़ने में महारत रखते हैं। अभी अन्ना साहब को कहीं सम्मान मिलने की बात सामने आयी। सम्मान देने वाले कौन है? तय बात है कि बाज़ार और प्रचार शिखर पुरुषों के बिना यह संभव नहीं है। इसे लेकर कुछ लोग अन्ना हजारे के आंदोलन के प्रायोजित होने का प्रमाण मान रहे तो उनके समर्थकों का मानना है कि इससे- क्या फर्क पड़ता है कि उनके आंदोलन और अब सम्मान के लिये पैसा कहां से आया? मूल बात तो यह है कि हम उनके विचारों से सहमत हैं।
हमारी बात यहीं से शुरु होती है। कार्ल मार्क्स सारे संसार को स्वर्ग बनाना चाहते थे तो गांधी जी सारे विश्व में अहिंसक मनुष्य देखना चाहते थे-यह दोनों अच्छे विचार है पर उनसे सहमत होने का कोई अर्थ नहीं है क्योंकि इन विचारों को वास्तविक धरातल क्रियाशील होते नहीं देखा गया। भ्रष्टाचार पर इंटरनेट पर हम जैसे लेखकों ने कड़ी हास्य कवितायें तो अन्ना हजारे के आंदोलन से पहले ही लिख ली थीं पर उनसे कोई इसलिये सहमत नहीं हो सकता था क्योंकि संगठित बाज़ार और प्रचार समूहों के लिये फोकटिया लेखक और समाजसेवक के प्रयास कोई मायने नहीं रखते। उनके लिये वही लेखक और समाजसेवक विषय वस्तु बन सकता है जिसे धनोपार्जन करना आता हो। सम्म्मान के रूप में भारी धनराशि देकर कोई किसी लेखक को धनी नहीं बनाता न समाज सेवक को सक्रिय कर सकता है। वैसे भी कहा जाता है कि जिस तरह हम लोग कूड़े के डिब्बे में कूड़ा डालते हैं वैसे ही सर्वशक्तिमान भी धनियों के यहां धन बरसाता है। स्वांत सुखाय लेखकों और समाजसेवकों को यह कहावत गांठ बांधकर रखना चाहिए ताकि कभी मानसिक तनाव न हो।
उत्तर प्रदेश में चुनाव चल रहे हैं। विज्ञापनों के बीच में प्रसारण के लिये समाचार और चर्चा प्रसारित करने के लिये बहुत सारी सामग्री है। ऐसे में प्रचार समूहों को किसी ऐसे विषय की आवश्यकता नही है जो उनको कमाई करा सके। यही कारण है कि अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को वैसे ही यार्ड में सफाई आदि के लिये डालकर रखा गया है कि जब प्लेटफार्म पर कोइ गाड़ी नहीं होगी तब इसे रवाना किया जायेगा। यह गाड़ी प्लेटफार्म पर आयेगी इसकी यदाकदा घोषणा होती रहती है ताकि उसमें यात्रा करने वाले यात्री आशा बांधे रहें-यदा कदा अन्ना हजारे साहब के इस अस्पताल से उस अस्पताल जाने अथवा उनकी अपने चेलों से मुलाकात प्रसारित इसी अंदाज में किये जाते हैं। ऐसा जवाब हमने अपने उस मित्र को दिया था जो अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की स्थिति का आंकलन प्रस्तुत करने को कह रहा था।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है।
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