सड़क पर उड़ते रंगों में
नहाने से अब हमारा दिल नहीं भरता।
रंगीन चेहरों की पीछे
कहाँ काली नीयत छिपी है
यह सोच यूं अपना दिल डरता।
कहें दीपक बापू
होली खेलने में वक्त खराब करना अब नहीं सुहाता
आओ
कुछ चिंतन करें,
अपनी सोच और ख़यालों में
नए नए रंग भरें,
पूरी ज़िंदगी रंगीन हो,
कभी न गमगीन हो,
पानी में घुले रंग
साबुन से आज ही मिट जाएँगे,
फिर कल हालातों से पिटते नज़र आएंगे,
दिल से ही चुनो अपने अंदर ऐसे रंग
जो किसी साबुन से नहीं मरता।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है।
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