Sep 28, 2012

पेशेवर दलाल और ज़ख्म-हिंदी व्यंग्य कविता (peshewar dalal aur zakhma-hindi poem or kaivta )

हादसों पर रोते लोगों के आंसु
पौंछने का जिम्मा जिन लोगों ने लिया
वह हमदर्दी का सौदा करने लगे हैं,
दवा लाने के लिये घायलों से लेकर पैसा
अपनी जेब भर लगे हैं।
कहें दीपक बापू
चौराहे पर रोने का कोई फायदा नहीं
कदम कदम पर कराहते लोग
क्या दर्द बांटेंगे,
कुछ पेशेवर दरियादिल भी हैं
जो जख्म की जात छांटेंगे,
फिर भी उम्मीद नहीं
दरबारों से नहीं आती मदद,
दोस्त दुश्मन बांट लेते रसद,
सिंहासनों पर बैठे लोग केवल मतलब के सगे हैं।

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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश 
poet and writer-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh

लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश



कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

Sep 18, 2012

महंगाई और आम आदमी की सस्ती ज़िन्दगी-हिंदी व्यंग्य कविता (mahgai aur aam aadmi ki sasti zindagi-mahgai par hindi kavita)

महंगाई बस यूं ही
बढ़ती जायेगी
आम इंसान की तरक्की
हमेषा ख्वाब में नज़र आयेगी।
कहें दीपक बापू
हम तो ठहरे सदाबाहर आम आदमी
तकलीफें झेलने की आदत पुरानी
एक आती है दूसरी जाती है
माया की तरह बदलती है रूप अपना
डरते नहीं है
जानते हैं
मुसीबतों से निजात
इस जन्म में हमें नहीं  मिल पायेगी।
तसल्ली है
चीजों की बढ़ती कीमत से
आम आदमी की ज़िन्दगी
पहले से सस्ती होती जायेगी।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश


कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
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Sep 8, 2012

चूहे जब बादशाह बनते हैं-हिंदी कविता (chuhe jab bante hain-hindi kavita rat and king-hindi poem)

बादशाह बनने का ख्वाब
देखता है पूरा ज़माना,
मगर कोई एक काबिल ही होता
जिसे मिलती है जहान की गद्दी
यह अलग बात है कि
नाकाबिलों को भी आता है
अपने इलाके को सल्तनत बताना।
कहें दीपक बापू
ठग बनते ठगी के सरताज,
मूर्ख अपनी हरकतों को माने
दुनियां का राज,
सोने के सिक्के संदूकों में छिपाकर,
लूट का माल अपने नाम लिखाकर,
हल्दी की गांठ मिलते ही
चूहों को भी आता है बादशाह बन जाना।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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