पाकिस्तान एक खत्म हो चुका
राष्ट्र है और उनके प्रधानमंत्री मियां नवाज शरीफ एक ऐसा लोकतांत्रिक चेहरा हैं जो
विश्व को दिखाने भर को है। उनसे यह आशा
करना बेकार है कि पूरे पाकिस्तान पर नियंत्रण कर पायेंगे। इससे पहले उनकी विरोधी पीपुल्स पार्टी तथा
राष्ट्रपति जरदारी को यह श्रेय प्राप्त जरूर हो गया कि उन्होंने वहां की कथित
प्रजातांत्रिक व्यवस्था में अपना कार्यकाल पूरा किया जिसका अवसर वहां किसी को नहीं
मिला था। संभव है नवाज शरीफ भी अपना
कार्यकाल पूरा करें। शायद नहीं भी कर सकें। इसका कारण यह है कि नवाज शरीफ का रवैया
भारत के प्रति अधिक बदला नहीं लगता और कहीं की कोई कारगिल जैसा युद्ध सामने न आ
जाये। युद्ध के बाद पाकिस्तान की लोकतांत्रिक सत्ता का पतन तय है।
अभी हाल ही में पांच
भारतीय सैनिकों की पूंछ जिले में जिस तरह हत्या हुई है उस पर पूरे देश में गुस्सा
है और जिस तरह प्रचार माध्यमों ने पाकिस्तानी प्रवक्ताओं के विषैले वचन इस देश के
लोगों को सुनने के लिये बाध्य किया है वह भी कम शर्मनाक नहीं है। आज तो हद ही हो गयी जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के
प्रवक्ता ने एक चैनल पर भारत के अंदरूनी मामलों की चर्चा कर जिस तरह अपनी धार्मिक
भावनाओं का इजहार किया उसके बाद तो यह आशा करना ही बेकार है कि पाकिस्तान कभी अपनी विचारधारा बदल सकता है। एक सरकारी प्रवक्ता
अपने सरकार की बात अत्यंत सावधानी से बोलता है इसलिये यह मानना गलत होगा कि कोई
बात भावावेश में कही गयी होगी। नवाज शरीफ
के मन की बात उनके प्रवक्ता के माध्यम से जिस तरह सामने आयी उससे तो नहीं लगता कि
आगे दोनों देशों के संबंध सामान्य शायद ही
रह पायें।
हालांकि ऊपर हमने यह जरूर लिखा कि पाकिस्तान के कथित प्रवक्ताओं या रणनीतिकारों
को भारतीय चैनल दर्शकों पर थोप रहे हैं पर सच यह भी है इस चर्चा ने हमारे जैसे
निष्पक्ष एवं स्वतंत्र लेखकों को वैचारिक
दृष्टिकोण से अत्यंत हैरान कर दिया है। यह
चर्चा सुनते हुए खून जरूर खोलता है पर यह भी सच है कि इससे कुछ ऐसी असलियतों का
आभास होता है जिनका पहले अनुमान ही किया जा सकता था। पाकिस्तानी प्रवक्ता अपने
धार्मिक एजेंडे को स्पष्ट रूप से बयान कर रहा है और उसका जवाब देने के लिये हम
धर्मनिरपेक्ष होने की लाचारी दिखाते हैं।
अगर हम उनके धार्मिक एजेंडे को चुनौती दें तो भारत में लोग नाराज हो सकते
हैं। दूसरी बात यह भी हम देख रहे हैं कि
धार्मिक आस्था के नाम ठेस पहुंचाने के नाम पर आजकल जिस तरह दोषारोपण होता है उसके
चलते अपने अलावा किसी अन्य धर्म पर
प्रतिकूल बात कहना हमेशा ही विवादास्पद माना जाता है। पाकिस्तान का निर्माण ही भारतीय धर्मों के
मानने वालों के पलायन और तबाही से हुआ
था। लंबे समय तक हम लोग यह मानते थे कि
पाकिस्तान के शासक ही विरोधी हैं पर आम जनता शायद ऐसी न हो पर जब से आधुनिक प्रचार माध्यमों ने अपना
प्रभाव दिखाया है उससे तो यही लगता है कि वहां की जनता में भारत तथा भारतीय धर्मों
के विरुद्ध इस तरह विष डाला जा चुका है जिसको निकालना अब आसान नहीं है। हमने इंटरनेट पर देखा है कि भारतीय ब्लॉग लेखक कहंी न कहीं पाकिस्तान के
लिये दोस्ताना बात कहते हैं पर वहां के ब्लॉग लेखकों ने कभी ऐसा नहीं किया। दूसरी बात यह भी कि देवनागरी लिपि तथा अरबी
लिपि ने ऐसा विभाजन किया है कि अब दोनों के आम लोगों के बीच कभी एका नहीं हो सकता।
कम से कम इंटरनेट पर साहित्यक संपर्क तो बन ही नहीं सकता।
एक बात तय है कि भारत और
पाकिस्तान के विभाजन की वह वजहें हमें नहीं लगती जो इतिहास में हमें बतायी जाती
हैं। आज जब प्रचार माध्यम इतने ताकतवर हैं
तब हम अनेक राजनीतिक शिखर पुरुषों को लेकर अनेक दर्दनाक टिप्पणियंा आती हैं। कहा
जाता है कि पहले के राजनीतिज्ञ आज के राजनीतिज्ञों से बेहतर थे। हम यह नहीं मानते
क्योंकि हमारा सवाल यह है कि उस समय क्या प्रचार माध्यम क्या इतने तीव्रगामी थे जो
उस समय के राजनीतिज्ञों की श्रेष्ठता स्वीकार की जाये। हमारा मानना है कि पुराने राजनीतिज्ञों से आज
के राजनीतिज्ञ कमतर नहीं है बल्कि अनेक मामलों में पुरानों से अधिक मुखर हैं और सच
बात कह ही देते हैं जबकि पुराने दिल की बात दिल ही में रखते थे। भारत और पाकिस्तान का विभाजन का धार्मिक आधार
एक तत्व हो सकता है पर इसका आर्थिक और सांस्कृतिक आधार भी रहा होगा। अगर हम मान लें कि विभाजन नहीं होता तो भारत की
आबादी चीन के बराबर तो होती ही साथ ही क्षेत्रफल भी बढ़ा होता। याद रखें चीन का बढ़ा
क्षेत्र तिब्बत पर अनाधिकृत कब्जे के कारण ही दिखता है। ऐसे यकीनन भारत चीन से कहीं ज्यादा ताकतवर
होता। ऐसे में आज चीन से डरने वाले ब्रिटेन और अमेरिका की स्थिति एशियां इन दो
देशों की ताकत के आगे क्या होती? आर्थिक
रूप से भारत दोनों देशों से बहुत आगे होता।
दूसरा यह भी कि अंग्रेजों को यह लगा कि कहीं न कहीं भारत के स्वाधीनता
आंदोलन में भारतीय धर्मों के लेोगों का
बाहुल्य है और ऐसे में स्वतंत्रता के बाद यहां के धर्म की ताकत अधिक होगी। उस समय कहीं न कहीं ब्रिटेन और अमेरिका का
धार्मिक एजेंडा रहा होगा। तीसरी बात यह है कि उस समय सऊदी अरब से अमेरिका की और
ईरान से ब्रिटेन की दोस्ती अच्छी थी जो आज भी कायम है। पाकिस्तान के रूप में धार्मिक आधार पर एक
कॉलोनी इन देशों को दी गयी। पाकिस्तान एक
तरह से उपनिवेश देश ही रहा है। यही कारण है कि आपातकाल में उसके मंत्रिपरिषद की
बैठक भी सऊदी अरेबिया में होती है। एक
समाचार पढ़ने को मिला था जिसमें एक भारतीय ईरान में पकड़ा गया पर उसे वापस भारत
भेजने की बजाय पाकिस्तान को दिया गया जो वहां जेल में बंद रहा-पता नहीं वह छूटा या नहीं। उससे यह तो साफ हो गया कि ईरान भले ही
पाकिस्तान का गहरा मित्र न हो पर कम से धार्मिक एकरूपता के कारण भारत से अधिक उसे
महत्व देता हैै। चौथी बात यह कि अगर
पाकिस्तान न बनता तो हिन्दी तथा देवनागरी का प्रचार बढ़ता ऐसे में अंग्रेजी के सहारे भारत को गुलाम बनाये रखने की
पश्चिमी देशों की योजना सफल नहीं होती।
पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा
उर्दू है जो वहां बोलने वाले बहुत कम है। यह सही है कि सारी भाषायें अरेबिक लिपि
की समर्थक हैं। स्वतंत्रता के बाद कुछ भारतीय नेता जब यह आशा कर रहे थे कि एक दिन
पाकिस्तान फिर भारत से मिलेगा तब वहां भाषा, धर्म और संस्कृति के नाम पर ऐसी योजना काम रही थी जो
कि इस संभावना को सदैव खत्म करने वाली थी और जिसका यहां कोई अनुमान नहीं करता
था। अब सवाल यह है कि आगे क्या होगा?
पाकिस्तान का खत्म होना ही
भारत के हित में हैं। वहां की अंदरूनी
हालात खराब हैं। हम पाकिस्तान के जिस
शिक्षित समाज से यह आशा करते हैं कि वह वहां के लोगों में भारत के प्रति घृणा का
भाव खत्म कर सकता है वही घृण फैला रहा है। यहां फिल्म, क्रिकेट, टीवी धारावाहिकों तथा कला क्षेत्रों में पाकिस्तान के लोग कथित मित्रता के
नाम पर बुलाये जाते हैं। उनकी मीठी बातें सुनकर भारतीय लोग खुश होते हैं पर दरअसल
यह उनका छलावा है। दूसरी बात यह कि मूल
भारतीय अध्यात्म दर्शन की चर्चा देश में होती रहती है। इस चर्चा को सुनते रहने के
कारण भारत में हर धर्म से जुड़ा विद्वान सकारात्मक सोच वाला है। भले ही अन्य धर्मों
के लोग भारत के मूल दर्शन का अध्ययन न करें पर सुनते सुनते कहीं न कहंीं उन पर
सकारात्मक प्रभाव होता है। अनेक मुस्लिम
तथा ईसाई विचारक कहीं न कहीं भारतीय धर्मो
के विषय का अध्ययन करते हैं। मूल बात यह कि यहां सभी धर्मों के लोग देवनागरी लिपि
को आत्मसात कर चुके हैं और भारतीय अध्यात्म दर्शन की पुस्तकों का अध्ययन उनके लिये
सहज है। इसलिये वह विचार फैंकते नहीं है
जबकि पाकिस्तान में भारतीय धर्मों को
खूंखार और अंधविश्वास वाला प्रचारित किया जाता है। वहां श्रीमद्भागवत गीता, पतंजलि योग साहित्य, रामायण या वेदों का अध्ययन करने वाला शायद ही कोई
हो। ऐसे में वहां सकारात्मक सोच वाले
विद्वानों को होना संभव नहीं है।
पाकिस्तान के नागरिकों के सहधर्मी भारतीय लोगों को उन जैसा मानना एक तरह
भद्दा मजाक लगता है। सच बात तो यह है कि
भारत के सभी जाति, भाषा, धर्म तथा क्षेत्रों में पाकिस्तान की उद्दंडता
के प्रति आक्रोश है और हमारे देश के प्रचार माध्यम पाकिस्तानियों को लाकर उनका
मजाक उड़ा रहे हैं। हालंाकि यह भी सच यह है कि इस तरह की चर्चा में यह साफ हो गया
कि भारत में बैठे कुछ लोग अगर पाकिस्तान से दोस्ताना रखने की आशा कर रहे हैं तो
वह गलत हैं। वहां की सेना और राजनेता
लातों के भूत हैं बातों से नहंी मानेंगे।
भारतीय जवानों की जिस तरह हत्यायें हो रही हैं वह बेहद गुस्सा दिलाने वाली
हैं और न चाहते हुए भी आगे उस पर लातें बरसानी ही पड़ेंगी।
कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'
ग्वालियर, मध्य प्रदेश
कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है।
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