करीब सौ बच्चे एक मॉल में शराब की पार्टी में शामिल
होने पर पकड़े गये। यह पार्टी फेसबुक के
संपर्कों का उपयोग कर आयोजित की गयी।
पुलिस को पता चला कि अवैध ढंग से यह आयोजन हो रहा है तो वह इन बच्चों का
सुधारने के लिये पहुंची। मॉल के जिस बार
में शराब पार्टी थी उसके स्वामी और प्रबंधकों को पुलिस ने पकड़ लिया पर बच्चों के
विरुद्ध मामला न दर्ज कर अभिभावकों को
बुलाकर उन्हें सौंपा। हमारे टीवी चैनलों के लिये यह बाल सामग्री अत्यंत
उपयोगी थी और तय बात है कि उन्होंने समाज के स्थिति पर किराये के आंसु भी बहाये।
चिंता जताई।
पुलिस ने बच्चों पर
प्रकरण दर्ज न कर उनके अभिभावकों को सौंपा यह अच्छी बात है। तर्क यह दिया कि सभी बालक बालिकायें
पंद्रह से बीस वर्ष तक की आयु वर्ग से
संबंधित हैं इसलिये उनके उज्जवल भविष्य की संभावनायें खत्म नहीं की जानी है। यह तर्क भी ठीक है। प्रचार माध्यमो में-टीवी
चैनल और अखबार-कुछ चर्चा सामाजिक अंतर्जालीय संपर्क पर हुई तो कुछ समाज में
व्याप्त व्यसनों की बढ़ती प्रवृत्ति पर भी
चिंता जताई गयीं। हिन्दुस्तान बिगड़ रहा है जैसे नारे भी पढ़ने और सुनने को मिले।
हमने इस घटना के दृश्य टीवी चैनलों पर देखे। इन दृश्यों में पकड़े गये बच्चों के अभिभावकों
में कुछ अपने हाथों से अपनी संतानों पर बरस रहे थे। इस दृश्य को देखकर हमारे अंदर यह विचार आया कि
आखिर यह अभिभावक अपने बच्चों को पीट क्यों रहे हैं? इसकी कुछ वजहें हमारी समझ में आयीं।
1-अभिभावकों को इस बात का अफसोस था कि बच्चे शराब पीते पकड़े गये न कि इसका
कि उनके बच्चे शराब पीते हैं।
2-पुलिस के हत्थे न चढ़ें इसलिये अपने बच्चों पर हाथ बरसाकर उन्हें बचा रहे
थे।
3-यह बताने के लिये बच्चे बिगड़े जरूर है पर हम तो ठीक प्रकार के अभिभावक
हैं।
यह तीनों बातें कम से
कम हमें तो जमती हैं। घर के बच्चे रात को घर से गायब हों और माता पिता उनकी
उपस्थिति के स्थान की जानकारी नहीं रखें तो उनको दोषमुक्त नहीं किया जा सकता। दरअसल हमारे समाज में आज कमाने की प्रवृत्ति ने
लोगों को हर तरफ से अंधा कर दिया है।
अभिभावक स्वयं पैसा कहां से कमा रहे हैं यह वह जानते हैं पर खर्च कैसे हो
रहा है इस पर अनेक उनकी दृष्टि नहीं जाती क्योंकि पैसा तो उनके पास बाढ़ की तरह चला
आता है। चाणक्य कहते हैं कि अधिक धन हो तो उसे निकालना चाहिये। हमारे लोग यह नहीं मानते तो पैसा स्वयं ही आगे
निकलने लगता है। जिस तरह बाढ़ का पानी अपने
किनारे तोड़ता है उसी तरह पैसा भी अपने ही घर उखाड़ता हैं। धनलोलुपों का
लक्ष्य एक ही है कि अपने बच्चों को इतना कमा कर दें कि आगे की सात पीढ़ियों
तक उनका नाम चलता जाये। आप अगर किसी से पूछें
कि ‘‘आप किसके लिये कमा रहे हैं?’’
वह फट से जवाब देगा कि ‘‘बच्चों के लिये कमा रहा हूं!’’
हमारे देश के किसी
पुराने दार्शनिक का कहना है कि पुत्र अगर सुयोग्य है तो वह स्वयं कमा लेगा। अगर
नालायक है तो सब गंवा देगा, इसलिये
उतना ही कमाओ जितना आवश्यक हो। बेकार में अपनी जिंदगी क्यों केवल सासंरिक विषयों
में बर्बाद हो। सच बात तो यह है कि बच्चों
का नाम लेना तो बहाना है। लोग अपनी
सामाजिक स्थिति में चार चांद लगाने के लिये कमाते हैं। कुछ लोग अपनी विलासिता के लिये कमाते हैं पर
नाम बच्चों का लेते हैं।
बहरहाल उन बच्चो को अपनी
भाग्य समझना चाहिये कि पुलिस ने उन्हें वह सबक सिखाया है जिसकी जिम्मेदारी उनके
माता पिता की थी। पुलिस वालों को तारीफ करना चाहिये कि वह अपना सामाजिक दायित्व
समझने लगे हैं। हमारा दर्शन तो कहता
है कि शिक्षा के दौरान विलासित से दूर
रहना चाहिये पर मुश्किल यह है कि आधुनिक शिक्षा प्रबंधक शिक्षा के दौरान ही
छात्रों को संपूर्ण व्यक्तित्व का स्वामी
बनाने का दावा करते हुए उनको अपनी संस्थाओं के अंतर्गत होने पर्यटन और पिकनिक कार्यक्रमों में शामिल होने
के लिये बाध्य करते हैं। शिक्षा के लिये
निर्धारित पाठ्यक्रम से अलग अन्य विषयों की जानकारी देकर शिक्षा के स्वामी और
प्रबंधक अपने अधिक से अधिक कुशल शैक्षणिक व्यवसायी होने का प्रमाण देना चाहते
हैं। ऐसे में अभिभावक भी यह सोचते हैं कि
हमें क्या चिंता पूरी फीस दे रहे हैं
हमारे बच्चे को तो विद्यालय और महाविद्यालय के शैक्षणिक ठेकेदार अपने आप ही एक
आदर्श व्यक्तित्व का स्वामी बना देंगे।
ऐसे में मद्यपान और ध्रुमपान से
संयुक्त ढेर सारे आयोजन होने ही जिसमें नवयुवक शामिल हों। सौ बच्चों को पकड़कर पुलिस ने उन्हें एक सबक
सिखाया पर उसे जीवन भर कितने बच्चे याद रखेंगे या इस घटना से पूरे देश कितने
भविष्य में ऐसा न करने या होने देने की छात्र और अभिभावक कसम खायेंगे कहना कठिन
है।
कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'
ग्वालियर, मध्य प्रदेश
कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है।
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