Jan 26, 2014

घर के अंदर और बाहर-हिन्दी व्यंग्य कविता(ghar ke bahar aur bahar-hindi vyangya kavita)



देश के आजादी और गणतंत्र को वही दे रहे गाालियां,
जिन्होंने आम इंसान से बजवाईं अपने लिये तालियां।
कहें दीपक बापू
अपनी अभिव्यक्ति के लिये मिले जिन्हें प्रचार के साधन,
दिखने के रहते बागी पर होते सौदागरों के साजन,
मसलों के लिये जूझते लोगों को देखकर जमाना खुश होता,
पर्दे के पीछे करते वही करते सौदे में समझौता जब वह सोता।
अपनी छवि चमकाने के लिये जो करते दूसरों का अपमान,
दूर बैठे आम इंसानों में ढूंढ रहे अपने लिये सम्मान,
घर से बाहर सड़क पर जूलूस निकाल कर जो लगा रहे नारे
घर के अंदर वही ले जाते सोने बहाकर लाने वाली नालियां।
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 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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