हमारा विश्वास छीनकर
उन्होंने अपनी आस खोई है।
अपने ही पांव तले
तबाही वाली घास बोई है।
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जेब में पैसा कम
पर सपने अमीरी से सजे हैं।
वातानुकूलित मॉल में
ग्राहक सोचता सामान
देखने में कितने मजे हैं।
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समस्या खड़ी कर
हल का सवाल पूछने आते हैं।
पत्थर दिल के बुत
हवा से जूझने जाते हैं।
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मन में बाज़ार से
खरीददारी की चाहत
पर जेब खाली है।
ज़माने ने जिंदगी
उधार पर ही टाली है।
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मिलती खुशी उधार से
चाहे जहां से हम मांग लेते।
नकद में सस्ता मिला चैन
इसलिये चाहतें यूं ही टांग देते।
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बस्तियों में आग लगा देते हैं
अमन में जंग जगा देते हैं।
जज़्बात के सौदागर
इंसानों को दगा देते हैं।
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