Apr 26, 2018

जवानी भी नशे में चूर होती-दीपकबापूवाणी (Jawani Bhi nashe mein chooh hotee=DeepakBapuwani)


जवानी भी नशे में चूर होती
किस्मत है कि जोश में भटके नहीं।
‘दीपकबापू’ साथ ईमान नाम भी खो देते
वह भले जो इश्क में अटके नहीं।
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अन्न जल दे रही धरा आसानी से
इंसान इसका मान नहीं करता
‘दीपकबापू’ आकाश से मांग रहा
मिला जो उसकी शान नहीं करता।
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हम सवाल करें वह भी सवाल करें,
जवाब के बदल आहें भरते हैं।
‘दीपकबापू’ े किताब से कमाई अक्ल
चिंताओं पर बस सलाहें करते हैं।
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शहीदों के याद में मेले लगाते,
आत्मप्रचार के शब्द भी पेले जाते।
कहें दीपकबापू दिल कुर्सी पर
जुबान से सपनों के ठेले लगाते।
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नाग सांप बिच्छू की आपस में लड़ाई,
चिड़िया किसे कोसे किसकी करे बड़ाई।
कहें दीपकबापू अच्छा है दाना चुगे
 ढूंढे अपना चूल्हा अपनी कड़ाई।
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जज़्बातों की गहराई मालुम नहीं
दर्द के अहसास का पैमाना न जाने।
कहें दीपकबापू रसस्वाद रहित दिल
श्रृगार गीत हास्य का ताना न माने।
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जिनसे उन्हें बहुत फायदे हैं,
उनके लिये ढूंढे बहुत वायदे हैं।
कहें दीपकबापू जो कंधा मददगार
उसे गिराने के भी कायदे हैं।
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जब अपना दर्द भूलाना चाहें,
ढूंढते दिल बहलाने की राहें।
कहें दीपकबापू तरीक एक ही
बेचैन गले लग मिलायें बाहें।
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Apr 7, 2018

पाप पुण्य कभी नहीं मरें, इंसान का पीछा बछड़े जैसे करें-दीपकबापूवाणी (Paap punya kabhi nahin maren-DeepakBapuWani)


अमन का पसंद नहीं उनको राग
वैमनस्य की लगा रहे आग।
कहें दीपकबापू सब देते दगा
मिलजुलकर छिपा रहे अपने दाग।
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घोटाले पर आंदोलन का घेरा है,
अपना हिस्सा मिले तो मुंह फेरा है।
कहें दीपकबापू सच्चा साधु वही
कहें जो माया मेरी राम भी मेरा है।
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माथे पर लगाये हुए चंदन
मन में माया के लिये क्रंदन।
कहें दीपकबापू त्यागी बने पाखंडी
बांध रहे गले राजसी बंधन।
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पाप पुण्य कभी नहीं मरें,
इंसान का पीछा बछड़े जैसे करें।
कहें दीपकबापू बता गये चाणक्य
सच सामने आता झूठ से डरें।
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Mar 17, 2018

सिंहासन मिला अपनों से मुंह फेरा, लगाया इर्दगिर्द चमचों को घेरा-दीपकबापूवाणी (Sinhasan mila apnon se moonh Fera-DeepakBapuWani)


चाहतों का ढेर मन में पड़ा है,
तंत्रमंत्र करें कहीं खजाना गड़ा है।
कहें दीपकबापू मायाजाल में
हर शख्स वीर कैदी जैसे खड़ा है।
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चंद्रमा जैसा कोई मनस्वी नहीं
सूर्य जैसा कोई तेजस्वी नहीं।
कहें दीपकबापू अमीर बहुत मिलते
कुबेर जैसा कोई यशस्वी नहीं।
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श्रृंगार रस में सब मस्त हुए
वीर रस के पियक्कड़ पस्त हुए।
कहें दीपकबापू आभासी संसार में
सत्य के साझेदार अब अस्त हुए।
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सिंहासन मिला अपनों से मुंह फेरा,
लगाया इर्दगिर्द चमचों को घेरा।
कहें दीपकबापू अंधे होकर बांटे रेवड़ी
गाते जायें क्या तेरा क्या मेरा।
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राजपद पर रोगी चेहरे विराजे हैं,
मेकअप ऐसे किया जैसे ताजे हैं।
कहें दीपकबापू क्या हिसाब मांगें
जिनकी सांसों में बेसुर ढोलबाजे हैं।
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भलाई के नाम पर लूट मचायें,
मदद की आड़ बेईमान छूट पायें।
कहें दीपकबापू जो बने धर्मरक्षक
अर्थनीति से समाज में फूट लायें।
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Feb 22, 2018

खजाने का पहरेदार से हिसाब न पूछना-दीपकबापूवाणी (Khazane ka Hisab paharedar se na poochhna-DeepakBapuwani)


हर रोज खजाने लुटने लगे,
पहरेदार हो गये लुटेरों के सगे।
कहें दीपकबापू मुंह बंद रखो
सुनकर हसेंगा जग जो आप ठगे।
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चक्षुदृष्टि क्षीण हो गयी
चश्में सभी ने लगा लिये हैं।
‘दीपकबापू’ पत्थर जैसे पाले दिल
अपने जज़्बातों से ही ठगा लिये हैं।।
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पहले चिड़िया को दाना चुगा देते हैं
फिर कागजी फसल उगा लेते है।
कहें दीपकबापू हिन्दी में सवाल
अंकगणित का उत्तर चुभा देते हैं।
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चंदन के पेड़ से सांप जैसे लिपटे हैं,
राजकाज से वैसे दलाल चिपटे हैं।
कहें दीपकबापू कर अपना भला स्वयं
सारे काम कमीशन से अच्छे निपटे हैं।
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धर्म की रक्षा का भेद न जाने,
अर्थ का संग्रह ही सब माने।
कहे दीपकबापू समाज के ठेकेदार
संपत्ति से चले संस्कार लाने।
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खजाने का पहरेदार से हिसाब न पूछना,
लुटने की देते वह पहले सूचना।
कहें ‘दीपकबापू’ गरीबी पर मत रोना
घरेलू लुटेरों से जो है जूझना।
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Feb 11, 2018

नये ताजा चेहरे समय से पुराने हो गये-दीपकबापूवाणी (naye taza chehahe samay se purane ho gaye-DeepakBapuWani)

आंखें तरेरे मुट्ठी भींचे जंग के लिये दिखें तैयार, थोड़े देर में बनेंगे अमन के यार।
‘दीपकबापू’ वीरता के लंबे चौड़े बयान करें, नकली गुस्सा बेचकर करते झूठ से प्यार।।
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शब्दों का जाल श्रोताओं को फांस रहे हैं, दर्द का इलाज करने वाले खांस रहे हैं।
‘दीपकबापू’ भावनाओं का व्यापार करते, जिंदादिल मतलबपरस्ती में ले सांस रहे हैं।
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नये ताजा चेहरे समय से पुराने हो गये, प्यार के रिश्ते बिछड़कर अनजाने हो गये।
‘दीपकबापू’ जिंदगी में यादों का भंडार भरा है, भुलाने के भी बहुत बहाने हो गये।।
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इधर लात मारे उधर प्यार की माया बुने माला, पीछे लगे बहुत हाथ किसी ने नहीं डाला।
‘दीपकबापू’ झाड़ू घुमायें रोज दीवार पर, मकड़ियां इधर उधर बना लेती फिर नया जाला।
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सफेद वस्त्र भी स्वच्छ चरित्र की पहचान कहां, भरे भंडार पर दानी की शान कहां।
‘दीपकबापू’ ज्ञानचक्षु बंद कर देखें सब, पांव न धरें लालची का होता सम्मान जहां।।
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