अपनी रोटी पकाकर
मेहननकश इंसान आग बुझा देता है
पर जिस शैतान ने
लालच को लक्ष्य बना लिया
वह पूरे जमाने को
झौंक कर झुलसा देता है।
मेहननकश इंसान आग बुझा देता है
पर जिस शैतान ने
लालच को लक्ष्य बना लिया
वह पूरे जमाने को
झौंक कर झुलसा देता है।
भर जाता है दो रोटी से पेट,
पर खातों में अपनी रकम को
बढ़ते देखकर भी नहीं सो रहा सेठ,
अपने पास जमा सोने की ईंटों से भी
नहीं भर रहा है दिल उसका
तिनके से बनी झौंपड़ी को खाक कर
उसकी राख में रुपया तलाश लेता है।
पर खातों में अपनी रकम को
बढ़ते देखकर भी नहीं सो रहा सेठ,
अपने पास जमा सोने की ईंटों से भी
नहीं भर रहा है दिल उसका
तिनके से बनी झौंपड़ी को खाक कर
उसकी राख में रुपया तलाश लेता है।
फरिश्ते और शैतान
कोई आसमान में नहीं बसते,
इंसानी चेहरों में वह भी संवरते,
पसीने की आग से जो रोटी खा रहे हैं,
अपने दर्द और खुशियों के साथ
जीवन बिता रहे हैं,
मुफ्त में जिनको मिली है विरासत,
जंग की ही करते हैं सियासत,
बनते हैं जो जमाने के खैरख्वाह,
नाम के हैं वह फरिश्ते
उनके आशियाने हैं
इंसानी जज़्बातों की कत्लगाह,
ऐसा हर शैतान
अपनी जिंदगी के चैन के लिये
जमाने की बैचनी बढ़ा देता है।
कोई आसमान में नहीं बसते,
इंसानी चेहरों में वह भी संवरते,
पसीने की आग से जो रोटी खा रहे हैं,
अपने दर्द और खुशियों के साथ
जीवन बिता रहे हैं,
मुफ्त में जिनको मिली है विरासत,
जंग की ही करते हैं सियासत,
बनते हैं जो जमाने के खैरख्वाह,
नाम के हैं वह फरिश्ते
उनके आशियाने हैं
इंसानी जज़्बातों की कत्लगाह,
ऐसा हर शैतान
अपनी जिंदगी के चैन के लिये
जमाने की बैचनी बढ़ा देता है।
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1 comment:
बढिया रचना है। बधाई।
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