अपनी जरूरतों को पूरा करने में लाचार,
बेकसूर होकर भी झेलते हुए अनाचार,
पल पल दर्द झेल रहे लोगों को
कब तक छड़ी के खेल से बहलाओगे।
पेट की भूख भयानक है,
गले की प्यास भी दर्दनाक है,
जब बेबस की आग सहशीलता का
पर्वत फाड़कर ज्वालमुखी की तरह फूटेगी
उसमें तुम सबसे पहले जल जाओगे।
---------
वह रोज नये कायदे बनवाते हैं,
कुछ करते हैं, यही दिखलाते हैं,
भीड़ को भेड़ो की तरह बांधने के लिये
कागज पर लिखते रोज़ नज़ीर
अपने पर इल्ज़ाम आने की हालत में
कायदों से छुट का इंतजाम भी करवाते हैं।
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कवि, संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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समसामयिक लेख तथा अध्यात्म चर्चा के लिए नई पत्रिका -दीपक भारतदीप,ग्वालियर
Apr 26, 2010
Apr 23, 2010
दौलतमंदों का सजा बाज़ार-हिन्दी शायरी (daulatmandon ka bazar-hindi shayari)
पैसे कमाने का हुनर
दुनियां में सबसे अच्छा माना जाता है,
भले ही कोई फन हो न हो
दौलतमंद खरीद लेता है
सारे फनकार कौड़ी के भाव
इसलिये हुनरमंद भी माना जाता है।
-----------
मयस्सर नहीं हैं जिनको रोटी
उनसे ज़माना खौफ खाता है।
इसलिये फुरसत मिलने पर करते हैं
सभी गरीब का भला करने की बात
बाकी समय तो दौलतमंदों के सजाये
बाजार में ही बीत जाता है।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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दुनियां में सबसे अच्छा माना जाता है,
भले ही कोई फन हो न हो
दौलतमंद खरीद लेता है
सारे फनकार कौड़ी के भाव
इसलिये हुनरमंद भी माना जाता है।
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मयस्सर नहीं हैं जिनको रोटी
उनसे ज़माना खौफ खाता है।
इसलिये फुरसत मिलने पर करते हैं
सभी गरीब का भला करने की बात
बाकी समय तो दौलतमंदों के सजाये
बाजार में ही बीत जाता है।
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Apr 16, 2010
अपना भला काम भुनाना नहीं-हिन्दी शायरी (bhala kam-hindi shayri)
बड़े बुजुर्ग सच कह गये कि
किसी का भला कर
फिर किसी को सुनाना नहीं।
भलाई का व्यापार
शायद पहले भी इसी तरह
चलता रहा होगा,
करते होंगे कम
लोग सुनाते होंगे अपने किस्से ज्यादा,
बिकता होगा पहले भी
बाज़ार में इसी तरह भलाई का वादा,
कौन मानेगा कि
बिना मतलब किसी का काम किया होगा,
पर इंसान तो गल्तियों का पुतला है
कभी कभी हो जाये भला काम
फिर उसे कभी अकेले में भी गुनगनाना नहीं,
लिख देना समय के हिसाब में
मिला इनाम तो ठीक
पर अपना खुद भुनाना नहीं।
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किसी का भला कर
फिर किसी को सुनाना नहीं।
भलाई का व्यापार
शायद पहले भी इसी तरह
चलता रहा होगा,
करते होंगे कम
लोग सुनाते होंगे अपने किस्से ज्यादा,
बिकता होगा पहले भी
बाज़ार में इसी तरह भलाई का वादा,
कौन मानेगा कि
बिना मतलब किसी का काम किया होगा,
पर इंसान तो गल्तियों का पुतला है
कभी कभी हो जाये भला काम
फिर उसे कभी अकेले में भी गुनगनाना नहीं,
लिख देना समय के हिसाब में
मिला इनाम तो ठीक
पर अपना खुद भुनाना नहीं।
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Apr 11, 2010
इंसानी मुखौटा-हिन्दी शायरी (insani mukhauta-hindi shayri)
भूख बाहर बिफरी है
अनाज के दाने गोदामों में पाये जाते हैं
भूखे इंसानों के पांव वहां तक क्या पहुचेंगे
पंछी भी पंख वहां तक नहीं मार पाते हैं।
इंसानी मुखौटा लगाये शैतानों ने
कर लिया है दौलत और ताकत पर कब्जा
अपनी भूख मिटाने के वास्ते
हुक्मत अपने इशारों पर चलाये जाते हैं।
--------
वादों पर कब तक यकीन करें
हर बार धोखा खाया है,
मगर फिर भी लाचारी से देखते
क्योंकि उन्होंने हर वादे से पहले
चेहरे पर नया मुखौटा लगाया है।
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भूखे इंसानों के पांव वहां तक क्या पहुचेंगे
पंछी भी पंख वहां तक नहीं मार पाते हैं।
इंसानी मुखौटा लगाये शैतानों ने
कर लिया है दौलत और ताकत पर कब्जा
अपनी भूख मिटाने के वास्ते
हुक्मत अपने इशारों पर चलाये जाते हैं।
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वादों पर कब तक यकीन करें
हर बार धोखा खाया है,
मगर फिर भी लाचारी से देखते
क्योंकि उन्होंने हर वादे से पहले
चेहरे पर नया मुखौटा लगाया है।
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3.दीपक भारतदीप का चिंतन
Apr 7, 2010
लहु और आंसु-हिन्दी शायरी (lahu aur ansu-hindi shayri)
जमीन पर लहु बिखरा पड़ा है
फिर भी उनका बयान
किन्तु और परंतु शब्दों के साथ खड़ा है।
मरने वालों पर बोले वह कुछ शब्द
पर कातिलों का दर्द भी बयान कर गये
हैवानों के इंसानी हकों के साथ
ज़माने से लड़कर उन्हें जिंदा रखने का जिम्मा
उनकी रोटी के गहने में सच की तरह जो जड़ा है।
---------
शहीद जो हो गये
उन पर उन्होंने आंसु बहाये,
पर फिर कातिलों के इंसाफ के लिये
खड़े हो गये वह मशाल जलाये।
हैवानों के चेहरे पर फरिश्तों का नकाब
वह हमेशा सजा दी
फिर इंसानी हक के नारे लगाये।
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फिर भी उनका बयान
किन्तु और परंतु शब्दों के साथ खड़ा है।
मरने वालों पर बोले वह कुछ शब्द
पर कातिलों का दर्द भी बयान कर गये
हैवानों के इंसानी हकों के साथ
ज़माने से लड़कर उन्हें जिंदा रखने का जिम्मा
उनकी रोटी के गहने में सच की तरह जो जड़ा है।
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शहीद जो हो गये
उन पर उन्होंने आंसु बहाये,
पर फिर कातिलों के इंसाफ के लिये
खड़े हो गये वह मशाल जलाये।
हैवानों के चेहरे पर फरिश्तों का नकाब
वह हमेशा सजा दी
फिर इंसानी हक के नारे लगाये।
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Apr 3, 2010
ईमानदार अब तबाह हो गये-हिन्दी शायरी (imandar ab tabah ho gaye-hindi shayri)
उनके दिखाये सपनों का पीछा करते कई घर तबाह हो गये,
अंधेरे को भगाने के लिये जलाई आग में अंधे स्वाह हो गये।
जंग भड़काई थी जमाने में, ईमान और इंसाफ लाने के लिये
हार गये तो अपने ही दोस्तों के खिलाफ एक गवाह हो गये।
मुखौटा लगाया पहरेदार का, सब का भरोसा जीतने के लिये,
लुट गया सामान, भरोसा करने वालों के चेहरे स्याह हों गये।
जिंदगी बनाने का दावा करने वालों पर नहीं करना भरोसा,
बेईमान चढ़े हैं हर शिखर पर, ईमानदार अब तबाह हो गये।
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अंधेरे को भगाने के लिये जलाई आग में अंधे स्वाह हो गये।
जंग भड़काई थी जमाने में, ईमान और इंसाफ लाने के लिये
हार गये तो अपने ही दोस्तों के खिलाफ एक गवाह हो गये।
मुखौटा लगाया पहरेदार का, सब का भरोसा जीतने के लिये,
लुट गया सामान, भरोसा करने वालों के चेहरे स्याह हों गये।
जिंदगी बनाने का दावा करने वालों पर नहीं करना भरोसा,
बेईमान चढ़े हैं हर शिखर पर, ईमानदार अब तबाह हो गये।
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