जीवन पथ पर धीमे धीमे
कदम बढ़ाना
यह राह कहीं सहज तो कहीं कठिन है,
रात्रि को चंद्रमा की इठलाती किरणों के तले
उतना ही मस्ताना जितना सह सको
क्योंकि आगे सूरज की किरणों से सजा
आने वाला दिन है।
अपने घर के रखवाले
खुद ही बनकर रहना,
किसी दूसरे को नहीं सौंपना
अपने सम्मान कागहना,
काली नीयत की आग
अच्छी नज़र को पिघला देती है
जैसे आग से पानी हो जाता हिम है।
चौराहे पर आकर चमकने की कोशिश
तुम्हें बाज़ार में बिकने वाली आवारा चीज़ बना देगी,
यह दौलत पाने के अनंत इच्छा
केवल जिंदगी ही नहीं
मौत को भी सोने के भाव गला देगी,
पैसा है यहां सभी का देवता
जबकि सर्वशक्तिमान ने बनाया उसे आवारा जिन्न है।
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कवि, संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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