इतिहास के पन्नों में
दर्ज खूनखराबे के हादसो में से
वह अपने ख्याल के मुताबिक
पढ़कर आते हैं।
बैठकर महफिलों में
फिर उन पर आंसु बहाते है,
खून का रंग एक जरूर मानते पर
ख्यालों न मिलते हों तो
कई इंसानों के खून भी
उनको पानी की तरह मानकर नज़र फेर जाते हैं।
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कुछ तारीखों को
हमेशा वह दोहराते,
कुछ को भूल जाते।
दर्द का व्यापार करने वाले
अपने जज़्बात सौदे की तरह बांटते
जहां न मिलें दाम,
न मिलता हो इनाम,
वहां से अपनी सोच सहित लापता हो जाते।
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कवि, संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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