सामने सजे हैं खूबसूरत चेहरे,
उनकी अदाऐं आजाद दिखती हैं
पर सहमा है उनका दिल देखकर पहरे,
परदे पर चलते फिरते बुत देखकर
उन्हें कभी फरिश्ता नहीं समझना।
अपनी उंगली से ज़माने पर
हुक्मत करते दिखते हैं,
मगर उनकी अदाओं का अंदाज़
परदे के पीछे बैठकर आका लिखते हैं,
शेर की तरह गरजने वाले अदाकारों पर
कभी शाबाशी मत लुटाना,
मुश्किल है उनके लिये
सच में कोई कारनामा जुटाना,
परदे के पीछे चलते खेल को देखना
आम इंसान के वास्ते कठिन है
इसलिये हंसी सपनों को कभी सच समझकर न बहलना।
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हर जगह मुखौटा बैठा है
किस पर यकीन करें कि
ज़माने में बदलाव लायेगा।
परदे के बाहर चलता खेल देखकर
ख्वाब देखना अच्छा लगा,
पर सच कभी न बना अपना सगा,
बिक रहा है भलाई का सामान बाज़ार में
ईमान हार गया है बेईमानों से
मुखौटों पर क्या इल्जाम लगायें
भ्रष्टाचार को कैसे भगायें
परदे के पीछे बैठे आकाओं का चेहरा कौन दिखायेगा।
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कवि, संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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