समाज सेवक ने कहा प्रचारक से
‘यार, तुम भी अज़ीब हो,
अक्ल से गरीब हो,
हम चला रहे गरीबों के साथ तुमको भी
करके अपनी मेहनत से समाज सेवा,
वरना नहीं होता कोई तुम्हारा भी नाम लेवा,
हमारी दम पर टिका है देश,
हमारी सुरक्षा व्यवस्था की वजह से
कोई नहीं आता तुमसे बदतमीजी से पेश,
फिर भी तुम हमारे भ्रष्टाचार के किस्से
क्यों सरेराह उछालते हो,
अरे, आज की अर्थव्यवस्था में
कुछ ऊंच नीच हो ही जाता है,
तुम क्यों हमसे बैर पालते हो,
बताओ हमारा तुम्हारा याराना कैसे चल पायेगा।’
सुनकर प्रचारक हंसा और बोला
‘क्या आज कहीं से लड़कर आये हो
या कहीं किसी भले के सौदे से कमीशन नहीं पाये हो,
हम प्रचारकों को आज के समाज का
चौथा स्तंभ कहा जाता है,
हमारा दोस्ताना समर्थन
तुम्हारा विरोध बहा ले जाता है,
फिर यह घोटाले भ्रष्टाचार का विरोध करने के लिये नहीं
हिस्से के बंटवारा न होने पर
उजागर किये जाते हैं,
मिल जाये ठीक ठाक तो
जिंदा मामले दफनाये भी जाते हैं
तुम्हारे चमचों ने नहीं किया होगा
कहीं हिस्से का बंटवारा
चढ़ गया हो गया मेरे चेलों का इसलिये पारा,
इतना याराना मैंने तुमसे निभा दिया
कि ऐसी धौंस सहकर दिखा दिया,
बांध में पानी भर जाने पर
उसे छोड़ने की तरह
हिस्सा आगे बढ़ाते रहो
शहर डूब जाये पानी में
पर हम उसे हंसता दिखायेंगे
लोगों को भी सहनशीलता सिखायेंगे
पैसे की बाढ़ में बह जाने का
खतरा हमें नहीं सतायेगा,
वह तो रूप बदलकर आंकड़ों में
बैंक में चला जायेगा,
रुक गया तो
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ
टूटकर तुम पर गिर जायेगा।’’
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कवि, संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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