Oct 27, 2011

चुंबन का स्वाद न मीठा न नमकीन-हिन्दी हास्य व्यंग्य रचना (chumban ka swad n meetha n namakeen-hindi hasya vyangya or comic satire article in hindi)

          सिनेमा या टीवी के पर्दे पर चुंबन का दृश्य देखकर लोगों के मन में हलचल पैदा होती है। पहले की युवा पीढ़ी तो देखकर मन में कसमसाकर रह जाती थी क्योंकि उस समय लड़कियों की शैक्षणिक तथा व्यवसायिक क्षेत्रों में उपस्थिति नहिनी थी। अब समय बादल गया है और खुलेपन के कारण युवा पीढ़ी को सार्वजनिक रूप से प्रेम के अवसर खूब मिलते हैं और वह उनका उपयोग करने के लिए बेताब हो उठती है।  अगर ऐसे में कहीं किसी प्रसिद्ध हस्ती ने किसी दूसरी हस्ती का सार्वजनिक रूप से चुंबन  लिया और उसकी खबर उड़ी तो हाहाकार भी मच जाता है। कुछ लोग मनमसोस कर रह जाते हैं कि उनको ऐसा अवसर नहीं मिला पर कुछ लोग समाज और संस्कार विरोधी बताते हुए सड़क पर कूद पड़ते हैं। चुंबन विरोधी चीखते हैं कि‘यह समाज और संस्कार विरोधी कृत्य है और इसके लिये चुंबन लेने और देने वाले को माफी मांगनी चाहिये।’
          अब यह समझ में नहीं आता कि सार्वजनिक रूप से चुंबन लेना समाज और संस्कारों के खिलाफ है या अकेले में भी। अगर ऐसा है तो फिर यह कहना कठिन है कि कौन ऐसा व्यक्ति है जो कभी किसी का चुंबन नहीं लेता। अरे, मां बाप बच्चे का माथा चूमते हैं कि नहीं। फिर अकेले में कौन किसका कैसे चुंबन लेता है यह कौन देखता है और कौन चुंबन ले देकर उसको सार्वजनिक रूप से प्रकट करता है?
           किसी के सार्वजनिक रूप से चुंबन लेने देने पर लोग ऐसे ही हाहाकार मचा देते हैं भले ही लेने और देने वाले आपस में सहमत हों। अगर किसी विदेशी होंठ ने किसी देशी गाल को चुम लिया तो बस राष्ट्र की प्रतिष्ठा के लिए खतरा और समाज के साथ ही  संस्कार विरोधी घोषित कर दिया जाता है। अन्य  भी न जाने कितनी नकारात्मक संज्ञाओं से उसे नवाजा जाता है। कहीं कहीं तो जाति,धर्म और भाषा का लफड़ा भी खड़ा हो जाता है। पश्चिमी देशों में सार्वजनिक रूप से चुंबन लेना शिष्टाचार माना जाता है जबकि भारत में इसे अभी तक अशिष्टता की परिधि में रखा जाता है। यह किसने रखा पता नहीं पर जो रखते हैं उनसे बहस करने का साहस किसी में नहीं होता क्योंकि वह सारे फैसले ताकत से करते हैं और फिर समूह में होते हैं।
          इतना तय है कि विरोध करने वाले भी केवल चुंबन का विरोध इसलिये करते हैं कि वह जिस सुंदर चेहरे का चुंबन लेता हुआ देखते हैं वह उनके ख्वाबों में ही बसा होता है और उनका मन आहत होता है कि हमें इसका अवसर क्यों नहीं मिला? वरना एक चुंबन से समाज,संस्कृति और संस्कार खतरे में पड़ने का नारा क्यों लगाया जाता है।
           दूसरे संदर्भ में इन विरोधियों को यह यकीन है कि समाज में कच्चे दिमाग के लोग रहते हैं और अगर इस तरह सार्वजनिक रूप से चुंबन लिया जाता रहा तो सभी यही करने लगेंगे। ऐसे लोगों की बुद्धि पर तरस आता है जो पूरे समाज को कच्ची बुद्धि का समझते हैं। यकीनन उनको अपनी आक्रामकता से ही समाज की संस्कृति और संस्कार बचते नज़र आते है।
         फिल्मों में भी नायिका के आधे अधूरे चुंबन दृश्य दिखाये जाते हैं। नायक अपना होंठ नायिका के गाल के पास लेकर जाता है और लगता कि अब उसने चुंबन लिया पर अचानक दोनों में से कोई एक या दोनों ही पीछे हट जाते हैं। इसके साथ ही सिनेमाहाल में बैठे वह  लड़के -जो इस आस में हो हो मचा रहे होते हैं कि अब नायक ने नायिका का चुंबन लिया-हताश होकर बैठ जाते हैं। चुम्मा चुम्मा ले ले और देदे के गाने जरूर बनते हैं नायक और नायिक एक दूसरे के पास मूंह भी ले जाते हैं पर चुंबन का दृश्य फिर भी नहीं दिखाई देता। फिल्म निर्माता जानते हैं कि ऐसा करना खतरनाक हो सकता है।
        आखिर ऐसा क्यों? क्या वाकई ऐसा समाज और संस्कार के ढहने की वजह से है। नहीं! अगर ऐसा होता तो फिल्म वाले कई ऐसे दृश्य दिखाते हैं जो तब तक समाज में नहीं हुए होते पर जब फिल्म में आ जाते हैं तो फिर लोग भी वैसा ही करने लगते हैं। फिल्म से सीख कर अनेक अपराध हुए हैं ऐसे में अपराध के नये तरीके दिखाने में फिल्म वाले गुरेज नहीं करते पर चुंबन के दृश्य दिखाने में उनके हाथ पांव फूल जाते हैं। सच तो यह है कि चुंबन  जब तक लिया न जाये तभी तक ही आकर्षण है उसके बाद तो फिर सभी खत्म है। यही कारण है कि काल्पनिक प्यार बाजार में बिकता रहे इसलिये होंठ और गाल पास तो लाये जाते हैं पर चुंबन का दृश्य अधिकतर दूर ही रखा जाता है।
       यह बाजार का खेल है। अगर एक बार फिल्मों से लोगों ने चुंबन लेना शुरू किया तो फिर सभी जगह सौंदर्य सामग्री की पोल खुलना शुरू हो जायेगी। महिला हो या पुरुष सभी सुंदर चेहरे सौंदर्य सामग्री से पुते होते हैं और जब चुंबन लेंगे तो उसका स्पर्श होठों से होगा। तब आदमी चुंबन लेकर खुश क्या होगा अपने होंठ ही साफ करता फिरेगा। सौंदर्य प्रसाधनों में कोई  ऐसी चीज नहीं होती जिससे जीभ को स्वाद मिले। कुछ लोगों को तो सौदर्य सामग्री से एलर्जी होती और उसकी खुशबू से चक्कर आने लगते हैं। अगर युवा वर्ग चुंबन लेने और देने के लिये तत्पर होगा तो उसे इस सौंदर्य सामग्री से विरक्त होना होगा ऐसे में बाजार में सौंदर्य सामग्री के प्रति पागलपन भी कम हो जायेगा। कहने का मतलब है कि गाल का मेकअप उतरा तो समझ लो कि बाजार का कचड़ा हुआ। याद रखने वाली बात यह है कि सौदर्य की सामग्री बनाने वाले ही ऐसी फिल्में के पीछे भी होते हैं और उनका पता है कि उसमें ऐसी कोई चीज नहीं है जो जीभ तक पहुंचकर उसे स्वाद दे सके।
       कई बार तो सौंदर्य सामग्री से किसी खाने की वस्तु का धोखे से स्पर्श हो जाये तो जीभ पर उसके कसैले स्वाद की अनुभूति भी करनी पड़ती है। यही कारण है कि चुंबन को केवल होंठ और गाल के पास आने तक ही सीमित रखा जाता है। संभवतः इसलिये गाहे बगाहे प्रसिद्ध हस्तियों के चुंबन पर बवाल भी मचाया जाता है कि लोग इसे गलत समझें और दूर रहें। समाज और संस्कार तो केवल एक बहाना है।
        एक आशिक और माशुका पार्क में बैठकर बातें कर रहे थे। आसपास के अनेक लोग उन पर दृष्टि लगाये बैठै थे। उस जोड़े को भला कब इसकी परवाह थी? अचानक आशिक अपने होंठ माशुका के गाल पर ले गया और चुंबन लिया। माशुका खुश हो गयी पर आशिक के होंठों से क्रीम या पाउडर का स्पर्श हो गया और उसे कसैलापन लगा। उसने माशुका से कहा‘यह कौनसी गंदी क्रीम लगायी है कि मूंह कसैला हो गया।’
       माशुका क्रोध में आ गयी और उसने एक जोरदार थप्पड़ आशिक के गाल पर रसीद कर दिया। आशिक के गाल और माशुका के हाथ की बीचों बीच टक्कर हुई थी इसलिये आवाज भी जोरदार हुई। उधर दर्शक तो जैसे तैयार बैठे ही थे। वह आशिक पर पिल पड़े। अब माशुका उसे बचाते हुए लोगों से कह रही थी कि‘अरे, छोड़ो यह हमारा आपसी मामला है।’
      एक दर्शक बोला-‘अरे, छोड़ें कैसे? समाज और संस्कृति को खतरा पैदा करता है। चुंबन लेता है। वैसे तुम्हारा चुंबन लिया और तुमने इसको थप्पड़ मारा। इसलिये तो हम भी इसको पीट रहे हैं।’
        माशुका बोली‘-मैंने चुंबन लेने पर थप्पड़ थोड़े ही मारा। इसने चुंबन लेने पर जब मेरी क्रीम को खराब बताया। कहता है कि क्रीम से मेरा मूंह कसैला हो गया। इसको नहीं मालुम कि चुंबन कोई नमकीन या मीठा तो होता नहीं है। तभी इसको मारा। अरे, वह क्रीम मेरी प्यारी क्रीम है।’
       तब एक दर्शक फिर आशिक पर अपने हाथ साफ करने लगा और बोला-‘मैं भी उस क्रीम कंपनी का ‘समाज और संस्कार’रक्षक विभाग का हूं। मुझे इसलिये ही रखा गया है कि ताकि सार्वजनिक स्थानों पर कोई किसी का चुंबन न ले भले ही लगाने वाला कोई  भी क्रीम लगाता हो। अगर इस तरह का सिस्टम शुरु हो जायेगा तो फिर हमारी क्रीम बदनाम हो जायेगी।’
        बहरहाल माशुका ने जैसे तैसे अपने आशिक को बचा लिया। आशिक ने फिर कभी सार्वजनिक रूप से ऐसा न करने की कसम खाई।
        हमारा देश ही नहीं बल्कि हमारे पड़ौसी देशों में भी कई चुंबन दृश्य हाहाकर मचा चुके हैं। पहले टीवी चैनल वाले प्रसिद्ध लोगों के चुंबन दृश्य दिखाते हैं फिर उन पर उनके विरोधियों की प्रतिक्रियायें बताना नहीं भूलते। कहीं से समाज और संस्कारों की रक्षा के ठेकेदार उनको मिल ही जाते हैं।
        वैसे पश्चिम के स्वास्थ्य वैज्ञानिक चुंबन को सेहत के लिये अच्छा नहीं मानते। यह अलग बात है कि वहां चुंबन खुलेआम लेने का शिष्टाचार है। भारतीय उपमहाद्वीप में इसे बुरा समझा जाता है। चुंबन लेना स्वास्थ्य के लिये बुरा है-यह जानकर समाज और संस्कारों के रक्षकों का सीना फूल सकता है पर उनको यह जानकर निराशा होगी कि अमेरिकन आज भी आम भारतीयों से अधिक आयु जीते हैं और उनका स्वास्थ हम भारतीयों के मुकाबले कई गुना अच्छा है।
         वैसे सार्वजनिक रूप से चुंबन लेना अशिष्टता या अश्लीलता कैसे होती है इसका वर्णन पुराने ग्रंथों में कही नहीं है। यह सब अंग्रेजों के समय में गढ़ा गया है। जिसे कुछ सामाजिक संगठन अश्लीलता कहकर रोकने की मांग करते हैं,कुछ लोग कहते हैं कि वह सब अंग्रेजों ने भारतीयों को दबाने के लिये रचा था। अपना दर्शन तो साफ कहता है कि जैसी तुम्हारी अंतदृष्टि है वैसे ही तुम्हारी दुनियां होती है। अपना मन साफ करो, पर भारतीय संस्कृति के रक्षकों देखिये वह कहते हैं कि नहीं दृश्य साफ रखो ताकि हमारे मन साफ रहें। अपना अपना ज्ञान है और अलग अलग बखान है।
जहां तक चुंबन के स्वाद का सवाल है तो वह नमकीन या मीठा तभी हो सकता है जब सौंदर्य सामग्री में नमक या शक्कर पड़ी हो-जाहिर है या दोनों वस्तुऐं उसमें नहीं होती।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है।

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