Nov 17, 2011

अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन और क्रिकेट मैच में फिक्सिंग-हिन्दी व्यंग्य (anna hazare ka anti corruption movement and fixing in cricket match-hindi satire article)

       अन्ना हजारे ने कथित भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के चलते जो प्रतिष्ठा अर्जित की उसे बाज़ार और उसका प्रचार माध्यम भुनाने में लगा है। जनमानस में उनकी लोकप्रियता का दोहन करने के लिये पहले तो फटाखे तथा अन्य सामा3न अन्ना छाप बने तो लंबी चौड़ी बहसों में टीवी चैनलों का विज्ञापन समय भी पास हो गया। इधर अन्ना हजारे साहब ने अपने ही प्रदेश के एक खिलाड़ी जिसे क्रिंकेट का कथित भगवान भी कहा जाता को भारत रत्न देने की मांग की है। ऐसे में लगता है कि बाज़ार और प्रचार समूहों ने शायद अपने भगवान को भारत रत्न दिलाने के लिये उनका उपयोग करना शुरु कर दिया है। हो सकता है अब यह सम्मान उसे देना भी पड़े। हालांकि इसके लिये अन्ना साहेब को अनशन या आंदोलन का धमकी देनी पड़ सकती है।
         एक बात यहां हम साफ कर दें कि हम न तो अन्ना हज़ारे के आंदोलन के विरोधी हैं न समर्थक! हम शायद इसके समर्थक होते अगर अन्ना ने अपने पहले अनशन की शुरुआत में ही विश्व कप क्रिकेट में भारत की विजय से प्रेरित होकर यह आंदोलन शुरु होने की बात नहीं कही होती। जिस तरह पेशेवर समाज सेवकों की मंडली ने उनके आंदोलन का संचालन किया उससे यह साफ लगा कि कहीं न कहीं आंदोलन प्रायोजित है और देश की निराश जनता में एक आशा का संचार करने का प्रयास है ताकि कहीं उसकी नाराजगी कहीं देश में बड़े तनाव का कारण न बन जाये। ऐसे में बाज़ार और प्रचार समूहों के स्वामियों के लिये यह जरूरी होता है कि वह कोई महानायक खड़ा कर जनता को आशावदी बनाये रखें। उस समय विश्व के कुछ देशों में अपने कर्णधारों के नकारापन से ऊगह निराश जनता हिंसा पर उतर रही थी तब भारतीय जनता में आशा का संचार करने के लिये उनका आंदोलन चलवाया गया लगा। लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसी फिक्सिंग होना बुरा नहीं है पर मुश्किल तब होती है जब जज़्बातों ने ओतप्रोत लोगों को यह बात कहीं जाये तो वह उग्र हो जाते हैं
             देश की स्थिति से सभी चिंतित हैं और इस पर तो हम पिछले छह साल से लिख ही रहे है। क्रिकेट का किसी समय हमें बहुत शौक था पर जब क्रिकेट में फिक्सिंग की बात पता चली तो दिल टूट गया और उसके बाद जब कोई इस खेल का नाम लेता है तो हमें अच्छा नहीं लगता।
          क्रिकेट में फिक्सिंग होती है और इस पर चर्चा प्रचार माध्यमों में अब जमकर चल रही है। आज ही पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी कांबली ने आरोप लगाया कि सन् 1996 में कलकत्ता में खेले गये विश्व कप किकेट सेमीफायनल में भारत के कुछ खिलाड़ियों ने मैच में हार फिक्स की थी। 15 साल बाद यह आरोप वह तब लगा रहे हैं जब सारा देश क्रिकेट मैच देखते हुए भी यह मानता है कि वह फिक्स हो सकता है। स्पष्टतः बाज़ार और प्रचार समूहों ने अपने लाभ के लिये क्रिकेट खेल को व्यवसाय बना लिया है। इतना ही नहीं सट्टा बाज़ार में भी वह अन्य उत्पाद से ज्यादा व्यापार करने वाला खेल बन गया है। ऐसे में इस खेल को मनोरंजन के लिये या फिर टाईम पास के लिये देखना बुरा नहीं है पर इसमें शुचिता की आशा करना मूर्खता है।
           जब अन्ना हज़ारे क्रिकेट से अपने लगाव और किसी खिलाड़ी को भारत रत्न देने की बात कर रहे हैं तो उनको नहीं पता कि इससे वह देश के उन लाखों लोगों के घावों को कुरेद रहे हैं जिन्होंने अपनी युवावस्था इस खेल को देखते हुए गुजार दी और तब पता लगा कि उनके देश के खिलाड़ी तो बाज़ार, प्रचार और अपराध जगत के संयुक्त उपक्रम के तय किये हुए पात्र हैं जो उनके इशारे पर ही चलकर कुछ भी कर सकते हैं। ऐसे में उनमें से कुछ लोग अन्ना हजारे के आंदोलन को ही नहीं उनकी कार्यशैली पर भी प्रश्न उठा सकते हैं।
            आखिरी बात यह कि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन एक महान कार्य है और उसके अगुआ होने के नाते अन्ना को प्रमाद वाले विषयों से दूर रहना चाहिए था। हम उन पर कोई अपनी बात थोप नहीं रहे पर यह सच है कि क्रिकेट से संबंधित विषय अनेक लोगों के लिये मनोरंजन के अलावा कुछ नहीं है। फिर अन्ना हज़ारे के कथित आंदोलन किसी परिणाम की तरफ जाता नहीं दिख रहा। दूसरा यह भी कि अन्ना हजारे ने जनलोकपाल का जो स्वरूप तय किया था उसे आमजन न समझें हो पर जानकार उस नजर रखे हुए हैं। एक बात यहां भी बता दें कि अन्ना हजारे साहब के लक्ष्य और उनके जनलोकपाल के स्वरूप में तालमेल पहले से ही नहीं दिख रहा था। देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को हटाने के लिये जूझ रहे अन्ना साहब ने कहा था कि देश में आम जनता से जुड़ी राशन कार्ड, लाइसैंस, विद्यालयों में बालकों के प्रवेश तथा बिजली पानी समस्याओं का निराकरण होना चाहिए। स्पष्टतः यह सभी राज्यों का विषय है जबकि केंद्र सरकार के लोकपाल की परिधि केवल राष्ट्रीय समस्याओं का हल ही संभव है। फिर अन्ना पूरे देश में एक जनलोकपाल की बात कर रहे हैं पर उसके कार्य क्षेत्र का विषय केवल केंद्र होगा। मान लीजिये संसद में लोकपाल विधेयक पास भी हो गया तो क्या अन्ना आम जनता की समस्याओं के हल का दावा कर रहे हैं वह संभव होगा?
              हम यहां अन्ना समर्थकों को निराश नहीं करना चाहते पर एक बात बता दें कि हमें अन्ना के दावों, सरकार के वादों तथा तथा लोगों की यादों के बीच में जाकर देखना है इसलिये निरंतर इस विषय पर कुछ न कुछ लिखते रहते हैं। यह सही है कि हमें अधिक पढ़ा नहीं जाता पर दूसरा सच यह भी कि सुधि लोग पढ़कर इसे अपने लेखों में स्थान देते हैं। हमारा नाम नदारत हो तो क्या पर वह हमारा संदेश जनता के बीच में जाता तो है। बाज़ार और प्रचार समूह क्रिकेट की बात करते हैं अन्ना भी कर रहे हैं। ऐसे में लगता है कि कहीं न कहीं उनके आंदोलन में फिक्सिंग भी हो सकती है भले ही उन्होंने नहीं की हो। देश में भ्रष्टाचार हटाना तो असंभव है पर उसे न्यूनतम स्तर तक लाया जा सकता है पर वह भी ढेर सारी मुंश्किलों के बाद! अलबत्ता अन्ना चाहें तो अपने ही प्रदेश के खिलाड़ी को भारत रत्न दिला सकते हैं। हां, उन्होंने इतनी अच्छी छवि बना ली है कि बाज़ार अपने व्यापारिक उत्पाद और प्रचार माध्यम विज्ञापन से अच्छी कमाई करवाने वाले भगवाने को भारत रत्न दिला सकता है। अभी तक अन्ना अपने आंदोलन को आधी जीत बताकर जनता को खुश करते रहे थे पर भारत रत्न दिलाकर वह देश के जनमानस को पूरी जीत का तोहफा दे सकते हैं। वैसे भी अन्ना देश में राजकीय क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की बात करते हैं क्रिकेट में उनको वह नहीं दिखता मगर जिनको दिखता है वह भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के बारे में तमाम तरह के अनुमान भी कर सकते हैं। उनको लग सकता है अन्ना हजारे के आंदोलन प्रबंधक चूंकि बाज़ार से प्रायोजित हैं इसलिये उनके माध्यम से वह अपने हित साध सकता है।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है।

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