भीड़ का शोरशराबा देखकर
अब अपनी तन्हाई की तड़प नहीं सताती है,
कहें दीपक बापू
अकेलेपर से घबड़ाये लोग
ढूंढते हैं मेलों में खुशी का सामान
खरीदते ही हो जाता जो पुराना
फिर दौड़ते हैं दूसरी के लिये
उम्र उनकी भी ऐसे ही
तड़पते बीत जाती है
....................................
उन दोस्तों के लिये क्या कहें
जिनसे छिपने की कोशिश हम करें
वह हमारे ठिकानों को ढूंढ ही डालते हैं,
कहें दीपक बापू
अपना चेहरा लेकर
बदल बदल कर अदाएँ
वह हर जगह सामने आते हैं
जिनसे मिलना हमेशा हम टालते हैं।
अब अपनी तन्हाई की तड़प नहीं सताती है,
कहें दीपक बापू
अकेलेपर से घबड़ाये लोग
ढूंढते हैं मेलों में खुशी का सामान
खरीदते ही हो जाता जो पुराना
फिर दौड़ते हैं दूसरी के लिये
उम्र उनकी भी ऐसे ही
तड़पते बीत जाती है
....................................
उन दोस्तों के लिये क्या कहें
जिनसे छिपने की कोशिश हम करें
वह हमारे ठिकानों को ढूंढ ही डालते हैं,
कहें दीपक बापू
अपना चेहरा लेकर
बदल बदल कर अदाएँ
वह हर जगह सामने आते हैं
जिनसे मिलना हमेशा हम टालते हैं।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है।
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५.दीपकबापू कहिन
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