बरसात का मौसम है
चलना जरा संभल कर
वरना फिसल जाओगे,
यह पक्षियों में इश्क के लिये है
तुम बचना अपनी अदाओं से
वरना पछतओगे।
कहें दीपक बापू
इंसान अगर अक्लमंदा हो तो
हर मौसम में मजे ले सकता है,
शोर शराबे और भागमभाग में
जो लूटना चाहता है खुशी
वह अपने जाल में फंसता है,
पक्षियों की तरह उड़ नहीं सकते,
पक्षुओं के मुकाबले में दौड़े में नहीं लगते,
अपनी सीमायें समझो
आनंद ही आनंद उठाओगे।
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चलना जरा संभल कर
वरना फिसल जाओगे,
यह पक्षियों में इश्क के लिये है
तुम बचना अपनी अदाओं से
वरना पछतओगे।
कहें दीपक बापू
इंसान अगर अक्लमंदा हो तो
हर मौसम में मजे ले सकता है,
शोर शराबे और भागमभाग में
जो लूटना चाहता है खुशी
वह अपने जाल में फंसता है,
पक्षियों की तरह उड़ नहीं सकते,
पक्षुओं के मुकाबले में दौड़े में नहीं लगते,
अपनी सीमायें समझो
आनंद ही आनंद उठाओगे।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है।
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