जब हमारे देश में हिन्दी के
अधिक से अधिक उपयोग की बात आती है तो अनेक लोग यह कहते हैं कि भाषा का संबंध रोटी
से है। जब आदमी भूखा होता है तो वह किसी भी भाषा को सीखकर रोटी अर्जित करने का
प्रयास करता है। वैसे देखा जाये तो हिन्दी भाषा के आधुनिक काल की विकास यात्रा
प्रगतिशील लेखकों के सानिध्य में ही हुई है और वह यही मानते हैं कि सरकारी कामकाज
मेें जब तक हिन्दी को सम्मान का दर्जा नहीं मिलेगा तब हिन्दी राष्ट्रभाषा के पद पर
वास्तविक रूप से विद्यमान नहीं हो सकती।
हिन्दी के एक विद्वान थे
श्रीसीताकिशोर खरे। उन्होंने बंटवारे के बाद सिंध और पंजाब से देश के अन्य हिस्सों
में फैलकर व्यवसाय करने वाले लोगों का दिया था जिन्हेांने स्थानीय भाषायें सीखकर रोजीरोटी कमाना प्रारंभ
किया। उनका यही कहना था कि जब हिन्दी को
रोजगारोन्मुख बनाया जाये तो वह यकीनन प्रतिष्ठित हो सकती है। इस लेखक ने उनका भाषण सुना था। यकीनन उन्होंने
प्रभावपूर्ण ढंग से अपनी बात रखी थी।
बहरहाल हिन्दी के उत्थान पर लिखते हुए इस लेखक ने अनेक ऐसी चीजें देखीं जो
मजेदार रही हैं। एक समय इस लेखक ने लिखा था कि कंप्यूटर पर हिन्दी में लिखने की सुविधा मिलना चाहिये। मिल गयी। टीवी पर हिन्दी शब्दों का उपयोग अधिक होना
चाहिये। यह भी होने लगा। हिन्दी के लिये
निराशाजनक स्थिति अब उतनी नहंी जितनी दिखाई देती है।
दरअसल अब हिन्दी ने स्वयं ही
रोजीरोटी से अपना संबंध बना लिया है। ऐसा कि जिन लोगों को कभी हमने टीवी पर हिन्दी
बोलते हुए नहीं देखा था वह बोलने लगते हैं। यह अलग बात है कि यह उनका व्यवसायिक
प्रयास है। अनेक क्रिकेट खिलाड़ी जानबूझकर
हिन्दी समाचार चैनलों पर अंग्रेजी बोलते थे।
हिन्दी फिल्मों के अभिनेता भी पुरस्कार समारोह में अंग्रेजी बोलकर अपनी शान
दिखाते थे। अब सब बदल रहा है। यह अलग बात
है कि हिन्दी को भारतीय आर्थिक प्रतिष्ठानों की बजाय विदेशी प्रतिष्ठिानों से
सहयोग मिला है।
आजकल क्रिकेट मैचों के जीवंत प्रसारण का हिन्दी प्रसारण रोमांचित करता
है। जिन चैनलों ने इस प्रसारण का हिन्दीकरण किया है वह सभी विदेशी पहचान वाले
हैं। इसमें ऐसे पुराने खिलाड़ी टीवी
कमेंट्री करते हैं जिनको कभी हिन्दी शब्द बोलते हुए देखा नहीं था। इनमें एक तो इतने महान खिलाड़ी रहे हैं जिनके
नाम पर युग चलता है पर उन्होंने हिन्दी में कभी संवादा तब शायद ही बोला हो जब
खेलते थे पर अब कमेंट्री में पैसा कमाने के लिये बोलने लगे हैं। मजेदार बात यह है कि इन जीवंत प्रसारणों गैर
हिन्दी क्षेत्र के खिलाड़ी अच्छी हिन्दी बोलते का प्रयास करते हुए जहां मिठास
प्रदान करते हैं वही उत्तर भारतीय पुराने खिलाड़ी अनेक बार कचड़ा कर हास्य की स्थिति
उत्पन्न करते हैं। इतना ही नहीं समाचार चैनलों पर भी कुछ उद्घोषक यही काम कर रहे
हैं।
सबसे मजेदार पुराने क्रिकेट
खिलाड़ी नवजोत सिद्धू हैं जो आजकल हिन्दी
बोलने वालों में प्रसिद्ध हो गये हैं। सच
बात तो यह है कि हिन्दी में बोलते हुए
हास्य रस के भाव का सबसे ज्यादा लाभ उन्होंने ही उठाया है। वह कमेंट्री के साथ ही कॉमेडी धारावाहिकों में
भी अपनी मीठी हिन्दी से अपनी व्यवसायिक पारी खेल रहे हैं। मूल रूप से पंजाब के होने के बावजूद जब वह
हिन्दी में बोलते हैं तो अच्छा खासा हिन्दी भाषी साहित्यकार भी यह मानने लगेगा कि
वह उनसे बेहतर जानकार हैं। मुहावरे और कहावतें को सुनाने में उनका कोई सानी नहीं
है पर फिर भी कभी अतिउत्साह में वह हिन्दी के शब्दों को अजीब से उपयोग करते
हैं। टीवी उद्घोषक भी ऐसी गल्तियां करते
हैं। यह गल्तिया आशा आशंका, संभावना अनुमान, द्वार कगार और खतरा और उम्मीद शब्दों के चयन में ही
ज्यादा हैं।
अब कोई हार के कगार पर हो तो
उसे आशा कहना अपने आप में हास्यास्पद है। अगर कहीं दुर्घटना हुई है तो वहां घायलों
की संख्या में उम्मीद या संभावना शब्द जोड़ना अजीब ही होता है। वहां अनुमान या आशंका शब्द उपयोग ही सहज भाव
उत्पन्न करता। उससे भी ज्यादा मजाक तब
लगता है जब कोई जीत के द्वार पर पहुंच रहा
हो और आप उसे जीत की कगार की तरफ बढ़ता बतायें। नवजोत सिद्धू एक मस्तमौला आदमी हैं।
हमारी उन तक पहुंच नहीं है पर लगता है कि उनके साथ वाले लोग भी ऐसे ही है जिनको शायद इन शब्दों का उपयोग समझ में
नहीं आता। उनका शब्दों का यह उपयोग थोड़ा
हमें परेशान करता है पर एक बात निश्चित है कि उन्होंने यकीनन उनकी जीभ पर सरस्वती
विराजती है और जब बोलते हैं तो कोई उनका सामना आसानी से नहीं कर सकता।
खेल चैनलों में खिलाड़ियों के
नाम हिन्दी में होते हैं। स्कोरबोर्ड
हिन्दी में ही आता है। इससे एक बात तो तय
है कि भारत में हिन्दी का प्रचार बढ़ रहा है पर हिन्दी भाषा की शुद्धता को लेकर
बरती जा रही असावधनी तथा उदासीनता स्वीकार्य नहीं है। न ही हिंग्लिश का उपयोग अधिक
करना चाहिये। एक प्रयास यह होना चाहिये कि
क्रिकेट खिलाड़ियों से भी यह कहना चाहिये कि वह पुरस्कार लेते समय भी हिन्दी में ही
बोलें। शुरु में पाकिस्तानी खिलाड़ियों से
उनकी बोली में बात हुई थी पर यह क्रम अधिक समय तक नहीं चला। यह प्रयास रमीज राजा
ने किया था। उन्होंने मैच के बाद पुरस्कार लेने आये भारतीय खिलाड़ियों से भी हिन्दी
में बात की थी। एक बात तय रही कि हिन्दी
से रोटी कमाने वाले संख्या की दृष्टि बढ़ते जा रहे हैं पर उनका लक्ष्य हिन्दी से
भावनात्मक प्रतिबद्धता दिखाना नहीं है।
हमें उम्मीद है कि हिन्दी से कमाने वाले जब भाषा से अपनी हार्दिक
प्रतिबद्धता दिखायेंगे तक उसका शुद्ध रूप भी सामने आयेगा।
कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'
ग्वालियर, मध्य प्रदेश
कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है।
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