आम इंसान जिंदा रहने के लिये मेहनत से जूझ रहा है,
जिसे मिला आराम का सामान वह मनोरंजक पहेलियां बूझ रहा
है।
मुख से शब्दों की वर्षा करते हुए आसान है दिल बहलाना,
रोते अपने गम पर सभी नहीं आता दूसरे का दर्द सहलाना,
अपनी नीयत साफ नहीं पर पूरे ज़माने पर शक जताते,
अपनी गल्तियों पर जिम्मेदार खुद तोहमत गैरों पर लगाते,
बाज़ार से हसीन सपने खरीद लेते हैं सस्ते भाव में अमीर,
जज़्बातों के सौदे में कामयाब होते वही मार ले जो अपना
जमीर,
कहें दीपक बापू दुनियां का कोई है उसूल यह बात जाओ भूल
दौलत के ढेर पर पहुंचा वही इंसान जो ज़माने का खून चूस
रहा है।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'
ग्वालियर, मध्य प्रदेश
कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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