कभी धूप से तपता शहर
पल भर मे बादल बरस जाते हैं।
मौसम ने शायद इंसान से
तेवर उधार लिये हैं
उसका कहर ऐसा कि
इंसान दया के लिये
तरस जाते हैं।
कहें दीपक बापू जमीन पर
धूप दिन बिताकर
चली जाती है
बादलों को भी कहां
यहां बस्ती बसाना है
तबाही के गीत
वह इसलिये सरस गाते हैं।
कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'
ग्वालियर, मध्य प्रदेश
कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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