कहीं बादल ऐसे बरसे
धरती पर उगा सोना
राख कर गये।
कहीं बूंद बूंद को
इंसान इतना तरसे
आकाश से निकले
दिल खाक कर गये।
कहें दीपक बापू जिंदगी टिकी है
धूप हवा और पानी की
दरियादिली पर
इंसान ने जब भी
दिखाई धरती से बेरुखी
जीवन तत्व तब मुंह फेरकर
अपनी धाक कर गये।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'
ग्वालियर, मध्य प्रदेश
कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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