Nov 7, 2015

मन का खेल-हिन्दी कविता(Man ka Khel-Hindi Kavita)


विलासिता में जिंदगी
बिताने वाले
दर्द से जल्दी कराहते हैं।

नहीं देखे कभी जिन्होंने
नाकामी के दौर
पसीने को सराहते हैं।

कहें दीपकबापू मन का खेल है
महल में रहने वाले
सड़क पर सोते लोगों को
सुखी मानते
जमीन पर सोने वाले
बिस्तर पाने के लिये
पसीना बहाते हैं।
----------
कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

No comments: