Jul 7, 2007

क्या वह बचपन का बदला ले रहा था?

उसने मुझे अपने लड़के की विवाह समारोह में शामिल होने के लिए अनेक बार फोन किया तब मैंने भी सोचा कि क्यों न वहां जाकर उसको प्रसन्नता का अनुभव कराया जाये, और मैं अपनी पत्नी के साथ रेल से उसके शहर रवाना हो गया।

उसके यहां जाने के पीछे मेरा यह भी स्वार्थ था कि उसके और मेरे बचपन के रिश्ते को सब जानते थे और मैं वहाँ नहीं जाता तो रिश्तेदार लोग जो कि मुझे पहले मुझे शराबी कहकर बदनाम करते थे उन्हें अपने विरुद्ध बोलने का अवसर देना।
मैंने अपनी वापसी टिकट का इंतजाम कर लिया क्योंकि मैं उसके घर रहने का इच्छुक नहीं था। रिश्ते में वह मेरा चचेरा भाई था और उसका और मेरा बचपन साथ-साथ बीता था और उसके और मेरे पिता आपस में भाई होने के साथ दुकान में साझेदार भी थे।

हम दोनों दुकान पर साथ बैठते, बाहर खेलते और आपस में झगडा करते और साथ-साथ घुमते भी थे। मेरा वह चचेरा भी होने से ज्यादा बडे भाई की तरह हो गया था। वह मुझसे बड़ा था। नौवी कक्षा तक प्रवेश लेने तक उसने उसने मेरे शैक्षणिक जीवन में अपनी भूमिका निभाई - दोनों के पिता की साझेदारी टूटने के साथ ही हम दोनों का बिछोह हो गया पर इसकी पीड़ा मुझे ज्यादा लगती थी उसे कम। मैं शुरू से चिन्तन करने वाला था और वह शुद्ध रुप से अपना स्वार्थ सिद्ध करने वाला। मुझे हमेशा लगता था कि वह केवल मुझे इसीलिये प्रेम करता दिखता है क्योंकि उस समय उसके पास कोई नहीं होता। जब उसे खेलने और घूमने के लिए दुसरे दोस्त मिल जाते तब वह मुझे एक तरह से भूल जाता था। हालांकि इसकी वजह यह भी हो सकती है कि वह आयु में मुझसे आठ वर्ष बड़ा था । मौका पड़ने पर अपनी बदतमीजी दिखाने से बाज नहीं आता था। समय गुजरता गया।

वह शहर से बाहर था और मैं अपने ही शहर में। उसके बाहर रहने से उसके बारे में रिश्तेदार ज्यादा नहीं जानते थे। इधर मैं पीने लगा था तो मेरी छबि उसके मुक़ाबले खराब होती जा रही थी। पीते तो और भी थे पर उसका नाम लेकर जब मेरी तुलना होती तो मुझे उससे कमतर करार दिया जाता ।

हमारी रिश्तेदारी बहुत बड़ी है और अनेक शादी के अवसरों पर उससे मुलाक़ात होती मैं शराब पीता पर उसे कभी शराब पीते नहीं देखा। उसे बदबू न आ जाये इसलिये उसके पास नहीं जाता था पर मुझे शक था कि वह भी पिए रहता था। मैं बचपन से ही अखबार और किताब पढने का शौक़ीन रहा हूँ और वह इसके लिए मेरी खिल्ली भी उडाता था और कहता था यह तो ज्ञानी है। बाद में वह जब मुझसे कोइ ज्ञान वर्द्धक चर्चा होती तो बडे ध्यान से सुनता।

स्टेशन पर उतरते ही मैंने उसको फोन किया तो उसने मुझे अपने घर का पता दिया और हम दोनों आटो से उसके घर पहुंच गये। वह घर पर नहीं था और उसकी पत्नी ने हम दोनों का स्वागत किया। उसके बेटे-जिसकी शादी हो रही थी-और बेटी ने हमारा अभिवादन तक नहीं किया। जब उनसे मुलाकत होती थी तो वह परिचय तक नहीं कराता था क्योंकि अधिकतर मुलाकातें किसी खास अवसर पर लोगों के हुजूम के बीच होतीं-और उसके मेरे संबंध भी ऐसे थे कि उसे लगता होगा कि उसके बच्चे मुझसे परिचित होंगे पर मैं जानता था कि उनसे मेरी दूरी थी-मैं उनके लिए एक तरह से पिता का एक ऐसा मित्र था जिससे उनको परिचय की आवश्यकता नहीं थी।

कुछ देर बाद वह आया और आकर मेरे गले मिला और बोला -"कल तुम काकटेल पार्टी में नहीं आये?ऐसा क्या काम था जो अपने भतीजे की शादी में बिल्कुल उस टाईम आये हो जब बरात निकलने वाली है?"

वह उस भतीजे की शादी की बात कर रहा था जिसने मेरा अभिवादन तक नहीं किया था। मैंने उससे कहा कि_तुम जानते हो कि मैंने अब पीना छोड़ दिया है, और मुझे लग रहा था कि अगर काकटेल पार्टी में आता तो लोग पीने की लिए दबाव डालते। मैंने सोचा कि ठीक बारात के वक्त ही पहुंचूं , यही अच्छा रहेगा।

वह चुप हो गया। मैंने देखा वहां उस मकान में उसके ससुराल पक्ष का ही कब्जा था-इसका मतलब यह था कि मेरे चाचा, बुआएं तथा उसके बहिन और बहनोई कही और ठहरे थे इस बात को मैं समझ गया। कुछ देर बाद मेरी चाची वहां आयी और उससे पता लगा कि उसने आसपास तीन-चार मकान लिए हैं और वहां बाकी रिश्तेदार भी ठहरे है। मैं अपना सामान लेकर पास लिए एक मकान में चला गया।

थोड़े देर बाद नहा धोकर उसके मकान के बाहर लगे टेंट में आकर बैठ गया तब वह मुझसे बोला-'' अब तुम यहीं जमे रहना और देखभाल करते रहना।"

मैं खुश हो गया कि उसने मुझसे एक काम तो कहा , हालांकि मैं जानता था कि वह कभी भी अपनी बदतमीजी दिखाने से बाज नहीं आयेगा। मुझे लगा कि वह कहीं न कहीं मुझे अपमानित कर मजे जरूर लेगा। इसमें ज्यादा वक्त नहीं लगा।

लडकी वाले बाहर से आये थे और उनसे मिलने के लिए दस लोगों को मिलने के लिए जाना था।मेरे चाचा, उसका ससुर, साडू समेत दस लोगों का चुनाव उसने किया जबकी उसमे मेरी वरीयता तीसरे नंबर की थी, पर उसने एक बार भी मुझसे नहीं कहा। रिश्तेदारों में इसको लेकर कानाफूसी भी हुयी -मैं खामोश रहा। दरअसल वहाँ से रिश्तेदारों को पैसे मिलने वाले थे और वहां हर कोई जाने को उत्सुक्त था। मेरी इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थे और अगर वह मुझसे कहता भी तो किसी अन्य का नाम सुझा कर अलग हो जाता।

बारात दोपहर की थी । बारात से पहले नाश्ते में उसने सबसे पहले मुझे आवाज दीं -उस समय ऐसा लगा कि देखो वह मुझे कितना प्यार करता है ,और मैं उसके द्वारा किये गये अपमान को भूलने का प्रयास करना लगा।

पीने वालों के लिए उसने पीने का इंतजाम कर दिया था। सबने पी पर मैंने और मेरे अन्य चचेरे भाई ने पीने से इंकार कर दिया -मैं उसका जिक्र नहीं किया था-वह बचपन से ही हमारे साथ स्टेपनी की तरह रहा था, पर वह चुंकि दुकान पर साथ नहीं रहा था इसीलिये उसे लोग हमसे इस तरह जोड़ कर नहीं देखते थे जैसे हम दोनों को ।

बेंड बजना शुरू हुआ , वह किराए की पगडियां लाया था और सबको पहनने लगा, और मुझे छोड़ गया। मेरे एक चाचा ने उसे इशारा भे किया पर वह अनदेखी कर गया। उसने मेरे साथ उस चचेरे भाई की अनदेखी कर गया। मेरा चचेरा भाई इस बात से नाराज भी हुआ ।

बरात में सब पिए हुए नाच रहे थे हम दोनों के अलावा । बरात में कुछ देर चलने के बाद फिर हमें बस में बैठना था । बस के पास पहुंचे तो बरसते शुरू हो गयी थी और पीने वाले नाच रहे थे। मैं और मेरा दूसरा चचेरा भाई बारात के पास ही सब देख रहे थे। वह आकर मेरे पास कहने लगा कि तुम लोग क्या मेरी बारात का मजा खराब कराने आये हो जो बस में नहीं बैठ रहे हो।

दूसरा चचेरा भाई बोला -'तेरा दिमाग खराब हो गया है , या बहुत पी ली है जो हमसे कह रहा है कि बारात का मजा खराब करने आये हो।

फिर वह चुप हो गया। बरात जब अपने ठिकाने पर पहुंची तो वहां स्वागत की तैयारी थी। उसने सब पुरुष और महिला रिश्तेदारों को मालाएं दीं लडकी के रिश्तेदारों को पहनाने के लिए हम दोनों चचेरे भाईयों और पत्नियों को इससे भी वंचित कर दिया।

रात को जब देर हो गयी और हम दोनों चचेरे भाईयों को अपने शहरों की तरफ रवाना होना था-उसे बस से और मुझे रेल से जाना था । बस स्टेंड और स्टेशन थोडी दूरी पर थे , हमने उससे विदा मांगी-मैंने उससे कहा"क्या तुम हम लोगों के लिए अपनी गाडी दिलवा दोगे , इस समय बरसात हो रहे है, आटो मिलना मुश्किल है।"

वह बोला-'मेरी गाडी कहीं गयी है। इस समय तो है नहीं।"

वह मुस्करा रहा था। उसके चेहरे पर मैंने पहली बार कुटिलता के भाव देखे थे। हम चारों ने बस में रखे अपने बैग उठाएँ और जाने के लिए जैसे ही नीचे आये तो देखा वह अपने मित्र को गाडी में बिठा रहा था और चालक से कह रहा था_'इन्हें जल्दी स्टेशन पर पहुँचाओ, इनकी गाडी का समय हो रहा है। "

उसकी हमारी तरफ पीठ थी। वह अपनी बात पूरी कर चला गया, और हमें नहीं देख पाया। हम चारों आटो पर रवाना हो गये। बस स्टेंड पर मेरा चचेरा भाई बस स्टेंड पर आटो से उतरा और मुझसे बोला-"बचपने में हमने इसके साथ ऐसा क्या किया था जिसका इसने इस तरह बदला लिया। अब तो इसके पास मैं कभी नहीं आऊंगा। "

मैंने उससे कहा-"तुम अपने मन से यह बातें निकाल दो। हो सकता है कि वह हमसे झिझकता हो। "

मैंने उससे कहा जरूर पर मैं जानता था कि उसने यह सब जानबूझकर बचपन का कोई बदला लेने के लिए ही किया है। स्टेशन पर हमने देखा कि उसका वह मित्र उसी गाड़ी में बैठ रहा था जिसमें हम बैठ रहे थे।

तब में सोचने लगा कि _'क्या वह वाकयी बचपन का बदला ले रहा था?'
(यह एक काल्पनिक कहानी है और इसका किसी व्यक्ति या घटना से कोई सबंध नहीं है)

2 comments:

Unknown said...

अच्छी कहानी है और सच में जीवन में ऐसा भी होता है ।
घुघूती बासूती

Udan Tashtari said...

बढ़िया, पसंद आया.