तू लिख
समाज में झगडा
बढाने के लिए लिख
शांति की बात लिखेगा
तो तेरी रचना कौन पढेगा
जहां द्वंद्व न होता वहां होता लिख
जहाँ कत्ल होता हो आदर्श का
उससे मुहँ फेर
बेईमानों के स्वर्ग की
गाथा लिख
ईमान की बात लिखेगा
तो तेरी ख़बर कौन पढेगा
अमीरी पर कस खाली फब्तियां
जहाँ मौका मिले
अमीरों की स्तुति कर
गरीबों का हमदर्द दिख
भले ही कुछ न लिख
गरीबी को सहारा देने की
बात अगर करेगा
तो तेरी संपादकीय कौन पढेगा
रोटी को तरसते लोगों की बात पर
लोगों का दिल भर आता है
तू उनके जज्बातों पर ख़ूब लिख
फोटो से भर दे अपने पृष्ठ
भूख बिकने की चीज है ख़ूब लिख
किसी भूखे को रोटी मिलने पर लिखेगा
तो तेरी बात कौन सुनेगा
पर यह सब लिख कर
एक दिन ही पढे जाओगे
अगले दिन अपना लिखा ही
तुम भूल जाओगे
फिर कौन तुम्हे पढेगा
झगडे से बडी उम्र शांति की होती है
गरीब की भूख से लडाई तो अनंत है
पर जीवन का स्वरूप भी बेअंत है
तुम सबसे अलग हटकर लिखो
सब झगडे पर लिखें
तुम शांति पर लिखो
लोग भूख पर लिखें
तुम भक्ति पर लिखो
सब आतंक पर लिखें
तुम अपनी आस्था पर लिखो
सब बेईमानी पर लिखें
तुम अपने विश्वास पर लिखो
जब लड़ते-लड़ते थक जाएगा ज़माना
मुट्ठी भींचे रहना कठिन है
हाथ कभी तो खोलेंगे ही लोग
तब हर कोई तुम्हारा लिखा पढेगा
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समसामयिक लेख तथा अध्यात्म चर्चा के लिए नई पत्रिका -दीपक भारतदीप,ग्वालियर
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4 comments:
दीपक जी, बहुत ही गहरी बात व सच्ची बात का दर्शन इस कविता में हुआ। बहुत सुन्दर ढंग से लिखी रचना है। बधाई।
झगडे से बडी उम्र शांति की होती है
गरीब की भूख से लडाई तो अनंत है
पर जीवन का स्वरूप भी बेअंत है
तुम सबसे अलग हटकर लिखो
तुम अपने विश्वास पर लिखो
जब लड़ते-लड़ते थक जाएगा ज़माना
मुट्ठी भींचे रहना कठिन है
हाथ कभी तो खोलेंगे ही लोग
तब हर कोई तुम्हारा लिखा पढेगा
क्या बात है !!!! भावनाओं से ओतप्रोत आपकी यह रचना अत्यंत सराहनीय है ....बधाई
ओके सर, जैसी आज्ञा.
अच्छी रचना है और बड़ी सरल भाषा मे आपने अपने भाव जाहिर किये है। पर थोडा ग़ुस्सा झलकता है।
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