अपनी जरूरतों को पूरा करने में लाचार,
बेकसूर होकर भी झेलते हुए अनाचार,
पल पल दर्द झेल रहे लोगों को
कब तक छड़ी के खेल से बहलाओगे।
पेट की भूख भयानक है,
गले की प्यास भी दर्दनाक है,
जब बेबस की आग सहशीलता का
पर्वत फाड़कर ज्वालमुखी की तरह फूटेगी
उसमें तुम सबसे पहले जल जाओगे।
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वह रोज नये कायदे बनवाते हैं,
कुछ करते हैं, यही दिखलाते हैं,
भीड़ को भेड़ो की तरह बांधने के लिये
कागज पर लिखते रोज़ नज़ीर
अपने पर इल्ज़ाम आने की हालत में
कायदों से छुट का इंतजाम भी करवाते हैं।
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कवि, संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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1 comment:
जब बेबस की आग सहशीलता का
पर्वत फाड़कर ज्वालमुखी की तरह फूटेगी
उसमें तुम सबसे पहले जल जाओगे।
Tapan mahsus ki ja sakti hai.Shubkamnayen.
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