ताजमहल प्यार का प्रतीक है
या परिश्रम का
यह समझ में न आया।
शहंशाह ने लूटा गरीब का खज़ाना,
कहलाया वह नजराना,
मजदूरों ने अपना खून पसीना बहाकर
संगमरममर के पत्थर सजाये,
फिर अपने हाथ कटवाये,
कहीं कब्र में दफन था मुर्दा
जिसकी हड्डिया भी धूल हो गयी,
उठकार रख दी वह सभी
नये बने महल के कुछ पत्थरों के नीचे
उसे साम्राज्ञी कहने की इतिहास से भूल हो गयी,
पहले पसीना बहाकर
फिर खून के आंसु रोने वाले
मजदूरों का नाम कोई कागज़ दर्ज नहीं कर पाया।
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कवि, संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
या परिश्रम का
यह समझ में न आया।
शहंशाह ने लूटा गरीब का खज़ाना,
कहलाया वह नजराना,
मजदूरों ने अपना खून पसीना बहाकर
संगमरममर के पत्थर सजाये,
फिर अपने हाथ कटवाये,
कहीं कब्र में दफन था मुर्दा
जिसकी हड्डिया भी धूल हो गयी,
उठकार रख दी वह सभी
नये बने महल के कुछ पत्थरों के नीचे
उसे साम्राज्ञी कहने की इतिहास से भूल हो गयी,
पहले पसीना बहाकर
फिर खून के आंसु रोने वाले
मजदूरों का नाम कोई कागज़ दर्ज नहीं कर पाया।
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1 comment:
बधाई! बिल्कुल सही लिखा है आपने
आज हमारे समाज में ग़रीबों और बेसहारों के प्रति जो शोषण की मानसिकता बनी हुई है इसका बहिष्कार होना चाहिए यदि समाज का कोई एक वर्ग आर्थिक एवं सामाजिक रूम में सम्पन्न है तो इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि वह निर्धनों और कमज़ोरों का ख़ून चूसने लगें।
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