May 16, 2010

वफा सस्ती कब थी-हिन्दी शायरी (vafaa sasti aur mahangi-hindi shayari)

वफा न कभी सस्ती थी
जो कहें अब महंगी हो गयी,
बाज़ार से हो गयी लापता बरसों से
खरीदने वालों की जो तंगी हो गयी।
दाम चुकाकर वफा खरीद सकते हैं,
पर उसके खालिस होने का नहीं दम भरते हैं,
जब जब कीमत का नकाब उतरा
तब असलियत नंगी हो गयी।
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कई अक्लमंद लगे हैं काम पर
दुनियां के आम इंसान जगाने के लिये,
इसलिये कोई दे रहा है खूनी तकरीर
कोई बांट रहा हथियार  लोगों में, लड़ने के लिये।
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कवि, संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

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1 comment:

दिलीप said...

जब जब कीमत का नकाब उतरा
तब असलियत नंगी हो गयी। kitni sachchi pankti hai ..lajawaab