Sep 30, 2014

विकास दर और भारत स्वच्छता अभियान -2 अक्टुबर महात्मा गांधी जयंती पर प्रारंभ स्वच्छता अभियान पर नया हिन्दी कविता पाठ(soch swachcha nahin ho pate-new hindi poem post on gandhi barith day or jaynti and bharat swachchata abhiyan)




हर शहर में
ऊंचे और शानदार भवन
सीना तानकर खड़े हैं।

आंखें नीचे कर देखो
कहीं गड्ढे में सड़क हैं
कहीं सड़कों पर गड्ढे
पैबंद की तरह जड़े हैं।

कहें दीपक बापू खूबसूरत
शहर बहुत सारे कहलाते हैं,
कूड़े के  मिलते ढेर भी
आंखों को दहलाते हैं,
विकास की दर ऊपर
जाती दिखती जरूर है
मुश्किल यह है कि
हमारी सोच स्वच्छ नहीं हो पाती
गंदी सांसों में फेर में  जो पड़े हैं।
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 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

Sep 25, 2014

समस्याओं के पहाड़-हिन्दी कविता(samasyaon ke pahad-hindi poem)



संसार में रिश्ते
कभी  स्वार्थ से बनते
कभी बिगड़ जाते हैं।

नाम कोई भी हो
स्थाई नहीं होते साथी
समय के साथ बदल जाते हैं।

संकीर्ण मानसिकता
मनुष्यों के मन में छाई
विचार आवश्यकता के अनुसार
आते और जाते हैं।

कहें दीपक बापू भीड़ के साथ
चलते रहना अच्छा लगता है
मगर भरोसा न करे
आकाश से समस्याओं के पहाड़
नाम लिखकर ही
सिर पर गिरने आते हैं।
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 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
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Sep 18, 2014

मनोरंजन का पेशा-हिन्दी कविता(business of entertainment-hindi poem)





आकर्षक शब्द वाचन की
कला में जादू है
मगर सभी को नहीं आती।

लोग मधुर स्वर के
जाल में फंस ही जाते
अर्थ की अनुभूति
सभी  को नहीं आती।

बिना सृजन के
रचयिता  दिखने की छवि
सभी को नहीं बनानी आती।

मनोरंजन के पेशे में
नारा नया होना चाहिये
पुरानी अदाओं पर भी
भीड़ खिंची चली आती।

कहें दीपक सुविधा भोगी
मनुष्य समाज हो गया है,
उपभोग के शोर में खो गया है,
मायाजाल में फंसे सभी
चाहे जिसे बंधक बना लो
नया बुनने की नौबत ही
कभी नहीं आती है।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
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Sep 11, 2014

हिन्दी में गरियाना और लतियाना-14 सितम्बर हिन्दी दिवस पर विशिष्ट कविता(hindi and hinglish-A Hindi special satire poem on hindi day, hindi diwas or hindi) divas)



बड़ी हस्ती है जिनकी
पर्दे पर आते हैं तो
अंग्रेजी में गरियाते हैं।

पीछे जाकर
आ जाते असलियत पर
एक दूसरे को
हिन्दी में लतियाते हैं।

कहें दीपक बापू बुद्धि का रिश्ता
जब बुद्धि से नहीं रखना हो
तब पराई भाषा से
शब्द निकालना आसान है
मगर जब समझाना
मुश्किल हो गरीब को
तब वह हिन्दी में बतियाते हैं।
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 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
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Sep 7, 2014

सांईबाबा के भक्तों की भावना आहत नहीं करना चाहिये-हिन्दी चिंत्तन(shirdi sa saibaba ke bhkton ki bhawana aahat nahin karna chahiye-hindi thought article)



             आज तक एक बात समझ में नहीं आई कि धर्म और अध्यात्मिक ज्ञान के बीच कोई संबंध है या नहीं? कुछ कथित धर्म विशेषज्ञ अपने अध्यात्मिक ज्ञानी होने का दावा करते हैं पर प्रवचन सांसरिक विषय पर देते हैं। अनेक कथित धर्मभीरु योद्धा  आध्यात्मिक पुरुष होने का दावा करते हुए समाज में अस्त्रों शस्त्रों की मदद से शांति तथा नैतिकता लाने का प्रयास करते हैं।  अनेक लोग द्रव्यमय यज्ञ को ही धर्म का प्रतीक मानते हैं तो अनेक ज्ञान से ही धर्म की रक्षा करना संभव मानते हैं।  कौन धार्मिक और कौन अध्यात्मिक स्वभाव का है यह पहचान किसी को नहीं रही।  इस भ्रमपूर्ण स्थिति ने समाज में अनेक अनेक उपसमूह बना दिये हैं।  श्रीमद्भागवत् गीता ने गुरु महिमा का वर्णन है पर कथित धर्म के ठेकेदार यह पदवी स्वयंभू  धारण कर अपने शिष्यों का एक प्रथक पंथ बना देते हैं। इन्हीं पंथों के बीच श्रेष्ठता की होड़ समाज में तनाव को जन्म देती है और भारतीय अध्यात्मिक ज्ञान कहंी एक कोने में पड़ा कराह रहा होता है। यह स्थिति अभी शिरडी के सांई बाबा को भगवान न मानने को लेकर प्रकट हुई है। 
            एक कथित धर्म संसद में शिरडी के सांई बाबा की मूर्तियां उन मंदिरों से हटाने का निर्णय लिया गया जहां भगवान के दूसरे रूपों की मूर्तियां स्थिति हैं।  इनमें से कुछ ऐसे मंदिरों से सांई बाबा की मूर्तियां हटाई गईं जहां मंदिर के निर्माण के समय ही स्थापित की गयीं थी। वहां भगवान के विभिन्न स्वरूपों की प्रतिमायें स्थापित तो की गयीं पर उस मंदिर की लोकप्रियता बढ़ाने की दृष्टि से सांई बाबा की मूर्ति भी लगाई गयी।  अब यह कहना कठिन है कि ऐसे मंदिरों की लोकप्रियता किस कारण बढ़ी पर एक बात तय है कि अब हटाने से  विवाद बढ़ेगा।
            हम सांई बाबा के भक्त न भी हों पर अगर हमारे अंदर भारतीय अध्यात्म ज्ञान के प्रति रुझान है तो कभी भी किसी की भक्ति पर आक्षेप करना ठीक नहीं लगता।  भारतीय अध्यात्म ज्ञान की धारा में बहने वाले सकारात्मक विचारक होते हैं। वह अपनी मन की बात कहते हैं पर दूसरे को आघात नहीं पहुंचाते।  दूसरे के दोष निकालकर अपने इष्ट के गुणों का प्रचार करना अहंकार के भाव को दर्शाता है। वैसे भी श्रीमद्भागवत गीता में भक्तों के चार प्रकार बताये गयें हैं-आर्ती, अर्थार्थी, जिज्ञासु और ज्ञानी।  इसका मतलब यह है कि अगर हम ज्ञान साधक हैं तो  अन्य तीनों भाव वाले भक्तों की उपस्थिति सहजता से मान्य करनी होगी।
            देश में आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्रों में हमेशा ही एक अंतर्द्वंद्व की स्थिति रही है। इसलिये आर्ती तथा अर्थार्थी भाव वाले भक्त जहां अपने मन की शांति मिलने की आशा होती है वहीं जाते हैं।  इन्हें अध्यात्मिक ज्ञान से अधिक अपने सांसरिक विषयों की चिंता रहती है।  उनकी इस प्रवृत्ति का लाभ उठाने वाले कम नहीं हैं।  इस प्रयास में ऐसे लोग भी शािमल होते हैं जिनके हृदय में माया से मिलने का सपना होता हैै पर मुख से राम का जाप करते हुए मिलते हैं। सांई बाबा भगवान नहीं थे हम यह मानते हैं पर  जो भगवान मानते हैं उनका मन दुखाने वालों को ज्ञानी नहीं कह सकते।  ऐसे लोग वेदों से श्लोक लाकर लोगों के बीच अपनी विद्वता प्रचारित कर रहे हैं पर श्रीमद्भावगत् गीता से मुंह छिपा रहे हैं।  उसमें साफ लिखा है कि कुछ भक्त मुझे सीधा न पूजकर देवताओं और प्रेतों की पूजा करते हैं वह अंततः मेरक  ही भक्त हैं और मैं उनको उनकी इच्छानुसार कुशलक्षेम उपलब्ध करा देता हूं। ऐसे भक्तों को ज्ञानी से कमतर अवश्य माना गया है पर हार्दिक भाव होने पर उनके प्रति भी सद्भाव दिखाना आवश्यक दिखाया गया है।
            चाणक्य कहते हैं कि ज्ञानियों का भगवान सर्वत्र व्याप्त है।  हमारा मानना है कि भगवान भी भक्तों से बनता है।  श्रीकृष्ण भगवान ने स्पष्ट कहा है कि सच्चा भक्त मेरा ही रूप है। ऐसे में ज्ञानियों के लिये भी सांई बाबा भगवान नहीं है पर उनके भक्तों को देखकर यह आभास तो होता ही है उनकी पूजा की निंदा करना अपने अज्ञान का प्रमाण देना है।
            हमारा मानना है कि सांईबाबा की लोकप्रियता उनके ज्ञान के नहीं वरन् सांसरिक विषयों में चमत्कार के कारण बनी है। उनके भक्त भी यही मानते हैं कि हम उनकी पूजा अपने जीवन में चमत्कार की आशा या संभावना से ही कर रहे हैं।  वह फकीर थे पर उनके भक्त ही बताते हैं कि अंतिम समय में उन्होंने अपने सोने के सिक्के अपने एक परम भक्त को सौंपे थे।  इसका मतलब वह भी कहीं न कहीं संग्रह करते थे और यह बात फकीर की उपाधि धारण करने वाले व्यक्ति पर जमती नहीं पर बात आकर वहीं अटकती है  कि उनके भक्तों की भक्ति पर हमला करना ठीक नहीं।  सांईबाबा के विरुद्ध चलाया गया अभियान सात्विक कर्म नहीं है। जो इसे चला रहे उनकी प्रवृत्तियां राजसी हैं और कहीं न कहीं अपना अज्ञात लक्ष्य पूरा करने के लिये प्रयासरत हैं। इस विषय में हिन्दू धर्म से जुड़े बुद्धिमान लोगों का मौन रहना अब ठीक नहीं लगता।  हमने देखा है कि हिन्दू धर्म के स्वतंत्र विचारक इस विवाद से दूर रहना चाहते हैं पर उन्हें यह समझना चाहिये कि सांई बाबा के भक्तों के भाव पर आघात भारतवर्ष की एकता को प्रताड़ित करना होगा।  सांई भक्त भारतीय धर्मों से अलग नहीं है।  वह ऐसा कुछ नहीं कर रहे जिसे भारतीय अध्यात्मिक दर्शन आहत हो जबकि  उनके विरोधी श्रीमद्भागवत गीता और वेदों की चर्चा करते हैं पर आचरण ठीक उसके विपरीत है। हिन्दू धर्म से जुड़े वह विद्वान जिन्हें अपने ज्ञान से दान नहीं चाहिये उन्हें अब अपनी बात स्पष्तः रखनी चाहिये ताकि इस विवाद से समाज में हानि उत्पन्न न हो।


 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
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Sep 1, 2014

गुस्से की आग और विकास की हवा-हिन्दी व्यंग्य कविता(gusse kee aag aur vikas ki hawa-hindi satire poem)



विकास के पहिये पर
अपनी गाड़ी चलाने
सभी आ जाते हैं।

निर्बाध गति से चलते पहिये से
कुचल जाता जब पैदल इंसान
नाराज समूह गाड़ी पर
पथराव करने आ जाते हैं।

कुचला इंसान पड़ा इधर
विकास की प्रतीक
जलती गाड़ियां दिखती उधर
गुस्से की आग
विकास की हवा के बीच
यह जंग सभी जगह हम पाते हैं।

कहें दीपक बापू खाली आकाश
खड़े हम देखते ऊपर
नीचे विकास के बनते बिगड़ते
रूप देखकर हैरान रह जाते हैं।
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 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
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