Sep 18, 2014

मनोरंजन का पेशा-हिन्दी कविता(business of entertainment-hindi poem)





आकर्षक शब्द वाचन की
कला में जादू है
मगर सभी को नहीं आती।

लोग मधुर स्वर के
जाल में फंस ही जाते
अर्थ की अनुभूति
सभी  को नहीं आती।

बिना सृजन के
रचयिता  दिखने की छवि
सभी को नहीं बनानी आती।

मनोरंजन के पेशे में
नारा नया होना चाहिये
पुरानी अदाओं पर भी
भीड़ खिंची चली आती।

कहें दीपक सुविधा भोगी
मनुष्य समाज हो गया है,
उपभोग के शोर में खो गया है,
मायाजाल में फंसे सभी
चाहे जिसे बंधक बना लो
नया बुनने की नौबत ही
कभी नहीं आती है।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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