हर शहर में
ऊंचे और शानदार भवन
सीना तानकर खड़े हैं।
आंखें नीचे कर देखो
कहीं गड्ढे में सड़क हैं
कहीं सड़कों पर गड्ढे
पैबंद की तरह जड़े हैं।
कहें दीपक बापू खूबसूरत
शहर बहुत सारे कहलाते हैं,
कूड़े के मिलते ढेर भी
आंखों को दहलाते हैं,
विकास की दर ऊपर
जाती दिखती जरूर है
मुश्किल यह है कि
हमारी सोच स्वच्छ नहीं हो पाती
गंदी सांसों में फेर में जो पड़े
हैं।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'
ग्वालियर, मध्य प्रदेश
कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है।
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