दीपावली की रात
को
जले दीये
सुबह बुझे खड़े
थे।
उनके तले चारों तरफ
अंधेरे साये
प्रातःकाल तक
डेरा डाले अड़े
थे।
कहें दीपक बापू
रंग बदलती दुनियां में
जहां ऊंचाई है,
वहीं खाई है,
जहां आनंद मिलने
के संकेत हैं,
वही खड़े स्वार्थ
के खेत हैं,
उत्थान के चलते
हैं दौर,
पतन पर भी करते
लोग गौर,
खुशी की रात जले
पटाखे
चमके मस्ती के
बादल
सुबह सूरज की
सलामी के लिये
जमीन पर गंदगी
के ढेर भी खड़े थे।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'
ग्वालियर, मध्य प्रदेश
कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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