क्रिकेट के मैच अब खिलाड़ियों के पराक्रम
से खेले नहीं जाते नहीं वरन् टीमों के स्वामियों की लिखी पटकथा के अभिनीत
किये जाते हैं। इसका पहले हमें उस समय
अनुमान हुआ था जब आज से आठ दस साल पहले इसमें इसके परिणाम सट्टेबाजों के अनुसार
पूर्व निर्धारित किये जाने के आरोप लगे थे। उस समय एक ऐसे मैच की बात सुनकर हंसी
आई थी जिसमें खेलने वाली दोनों टीमें हारना चाहती थी। उस समय लगातार ऐसे समाचार आये कि हमारी क्रिकेट
में रुचि समाप्त हो गयी।
अब जिस तरह क्रिकेट के व्यापार से जुड़े लोगों की हरकतें दिख रही हैं उससे
यह साफ होता है कि क्रिकेट खेल अब फिल्म की तरह हो गया है। क्रिकेट के व्यापार में
लगे कुछ लोग जब असंतुष्ट होते हैं तो ऐसी पोल खेलते हैं कि सामान्य आदमी हतप्रभ रह
जाता है। टीवी पर आंखों देखा हाल सुना रहे
अनेक पुराने क्रिकेट खिलाड़ी भी अनेक बार उत्साह में कह जाते हैं कि इसमें केवन
मनोरंजन, मनोरंजन मनोंरंजन ढूंढना चाहिये।
हम जैसे लोग डेढ़ दशक से मूर्ख बनकर इसमें राष्ट्रभक्ति का भाव ढूंढते रहे।
स्थिति यह रही कि क्रिकेट, फिल्म, टीवी, टेलीफोन, अखबार तथा रेडियो जैसे मनोरंजन साधनों पर कंपनी राज हो गया है। स्वामी लोग फिल्म वालों को क्रिकेट मैच और
क्रिकेट खेलने वालों ने चाहे जब नृत्य करवा लेते हैं। टीवी के लोकप्रिय कार्यक्रमों में उनकी
उपस्थिति दिखाते हैं। ऐसे में लोग भले ही फिल्म, टीवी,
और क्रिकेट के लोकप्रिय नामों पर फिदा हों पर समझदार
लोग उन्हें धनवान मजदूर से अधिक नहीं मानते।
हमारा विचार तो यह है कि क्रिकेट, टीवी धारावाहिक और
फिल्म में अपना दिमाग अधिक खर्च नहीं करना चाहिये।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'
ग्वालियर, मध्य प्रदेश
कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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