Jun 15, 2015

जमीन और आकाश की चाल-हिन्दी कविता)zamin aur akash ki chal-hindi poem)

बहुत चेहरे देखे
समय के साथ चरित्र की
चाल बदल गये।

जमीन पर उसूल से
वह करते थे शिकार
आकाश में पहुंचे
अक्ल के जाल बदल गये।

कहें दीपक बापू ऊंचाई पर
नीचे गिरने का खतरा सताता है,
हवा का उठता गिरता हर झौंका
दिल को डराता है,
उसूलों से जमीन पर
घिसट कर ही चल पाये,
कर लिये समझौते जिन्होंने
शिखर पर वही रहे पांव जमाये,
कैलैंडर के कई साल  बदल गये।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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