Jun 11, 2015

संस्कारी नाव-हिन्दी कविता(sanskari naav-hindi poem)

भीड़ लगी है ऐसे लोगों की
 जो मुख में राम
बगल में खंजर दबाये हैं।

खास लोगों का भी
जमघट कम नहीं है
कर दिया जिन्होंने
शहर में अंधेरा
अपना घर रौशनी से सजाये हैं।

कहें दीपक बापू किसे पता था
विकास का मार्ग
विनाश के समानातंर चलता है
मझधार में फंसी संस्कारी नाव
जिसे किसी ने पीछे लौटने के
 गुर नहीं बताये हैं।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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