Sep 27, 2015

दीपकबापू वाणी (Deepak bapu wani on Super Sunday Great Funday


दर्शक रहने की आदत हो गयी, अपना कत्ल भी यूं ही देखेंगे।
दीपकबापू पर्दे पर लटका दिमाग, लोग भीड़ में भेड़ ही दिखेंगे।।
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पर्दे पर कत्ल के दृश्य देख, सड़क पर भी दर्शक हो जाते हैं।
दीपकबापू आंखे सोचती नहीं, लोग मजे लेते खो जाते हैं।
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शराब करती दिमाग का दही, जिसने पी समझो कायर हो गया।
दीपकबापूग्लास छोड़ कलम पकड़ी, समझो वह शायर हो गया।।
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झूठा करे या सच्चा वादा, हम सभी पचा जाते हैं।
दीपकबापू किसकी पोल खोले, सभी नज़र बचा जाते हैं।
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कमान से तीर जैसे शब्द निकलते, वीर हो तभी बात बजाना।
दीपकबापूमृत संवेदना के घर, चेतना सभा नहीं सजाना।।
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स्वर्ग की चाहत में इंसान, नरक बना देता यह जहान।
दीपकबापू बेबस फरिश्ते हैं, खामोशी से बचाते जान।।
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जिंदगी के महंगे सुंदर पल, गुनाह पर क्यों खर्चा करें।
दीपकबापूजुबान देवता है, मसखरी की क्यों चर्चा करें।।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

Sep 19, 2015

चेतना कब लायेंगे हम-हिन्दी कविता(Chetna kab layenge ham-hidi poem)

पुरानी कहानियों से
 कब तक सीखेंगे
फिर सिखायेंगे हम।
धरती पर इतिहास की
धारा अनवरत प्रवाहित
नई कहानियां के दान से
कब तक कतरायेंगे हम।

कहें दीपकबापू जड़ समाज पर
कब्जा रखने वाले
मरे भूत के भय का
दंड बनाकर बदलाव रोके हैं।
जिंदा लोगों में
चेतना कब लायेंगे हम।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
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Sep 12, 2015

साहित्य सौदा हो जाता है-हिन्दी दिवस पर कविता(sahitya sauda hog jata hai-Hindi Kavita on HindiDiwas)


मशहूर लेखक के
शब्द बाज़ार में
महंगे बिक जाते हैं।

चौराहे तक लेकर नहीं गये
अपने भारी भरकम शब्द
ऐसे लेखक अर्थ के बाज़ार में
कहां टिक पाते हैं।
 ‘कहें दीपक बापू बाज़ार के खेल से
साहित्य सौदा हो जाता है
मनोरंजन पहला मसौदा हो जाता है
सत्य से सजे  शब्द
वहां नहीं टिक पाते हैं।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
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Sep 6, 2015

हृदय के भाव-हिन्दी कविता(hridya ki bhav-hindi poem)


जुबान चलती जब कैंची की तरह
अक्ल के दरवाजे
बंद हो जाते हैं।

मतलबपरस्त करते शोरशराबा
वफा चाहने वालों के शब्द
मंद हो जाते हैं।

कहें दीपकबापू भीड़ से दूर
 अकेले में सोच से होता अहसास
कौन कितने पानी में हैं
तब हृदय के भाव
धारा में बहकर
छंद हो जाते हैं।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
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