दर्शक रहने की आदत हो गयी, अपना कत्ल भी
यूं ही देखेंगे।
दीपकबापू पर्दे पर लटका दिमाग, लोग भीड़ में भेड़
ही दिखेंगे।।
--------------------
पर्दे पर कत्ल के दृश्य देख, सड़क पर भी दर्शक
हो जाते हैं।
दीपकबापू आंखे सोचती नहीं, लोग मजे लेते खो
जाते हैं।
---------------
शराब करती दिमाग का दही, जिसने पी समझो
कायर हो गया।
‘दीपकबापू’ ग्लास छोड़ कलम पकड़ी, समझो वह शायर हो गया।।
--------------
झूठा करे या सच्चा वादा, हम सभी पचा जाते
हैं।
दीपकबापू किसकी पोल खोले, सभी नज़र बचा
जाते हैं।
.................
कमान से तीर जैसे शब्द निकलते, वीर हो तभी बात
बजाना।
‘दीपकबापू’ मृत संवेदना के घर, चेतना सभा नहीं सजाना।।
--------------
स्वर्ग की चाहत में इंसान, नरक बना देता यह
जहान।
दीपकबापू बेबस फरिश्ते हैं, खामोशी से बचाते
जान।।
-------------
जिंदगी के महंगे सुंदर पल, गुनाह पर क्यों
खर्चा करें।
‘दीपकबापू’ जुबान देवता है, मसखरी की क्यों चर्चा करें।।
...................
कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'
ग्वालियर, मध्य प्रदेश
कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.हिन्दी पत्रिका
५.दीपकबापू कहिन
६. ईपत्रिका
७.अमृत सन्देश पत्रिका
८.शब्द पत्रिका
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.हिन्दी पत्रिका
५.दीपकबापू कहिन
६. ईपत्रिका
७.अमृत सन्देश पत्रिका
८.शब्द पत्रिका